निरुपमा के लिए

युवा पत्रकार निरुपमा पाठक की दिल दहलाने वाली हत्या ने हमारे बीच रह रहे छदम प्रगतिशीलों के नकाब उतारदिए हैं. वो अब हत्यारी कौम के पक्ष में खुल कर सामने गए हैं. वो निरुपमा की मौत को अस्पष्ट बताते हुए कानूनी पेंच को इतनी मजबूती से उठा रहे हैं जैसे की इससे बहुत फर्क पड़ने वाला है की कौन लोग उस युवा संभावना के अंत के जिम्मेदार हैं. निरुपमा पर मेरी पिछली पोस्ट पर साथी पुनीत ने कविता के रूप में एक काव्यात्मक टिप्पणी दी. मेरे कहने पर उन्होंने अपनी उस क्षणिक प्रतिक्रिया को पूरी कविता में तब्दील किया- ब्लॉगर

जयती-जयती
के नारो से
धर्म पताकाएं
लहराई ...
भूख-लूट
क्या लाती
उनको
मुद्दो की सड़को पर भला,
जो
धर्म पे लगी
आंच ले आई ....
वाह ! महान संस्था
वाह ! महान बंधनो की
रक्त मे लिपटी कथा ....
हे महान शोध की
प्रयोगशाला
के जनो ,
हे निचुड़ जाने
को तत्पर
देवीरूपी
स्तनो .....
तेरे देवालय के भीतर ,
हुआ है जो भी
आज तलक वो ,
घटा है बाहर
तो पाबंदी ?
खुले आम अब
सींग दिखाकर ,
नाच रहे है
नंगे नंदी ...
प्रेम था तेरे
सदा सनातन ,
अनंतगामी ,
धर्म का खंभा ,
प्रेम मे ठहराव
आता है !
अब ठहर गया वो
उसके भीतर
तो काहे का
तुम्हे अचंभा ....
सोच रहा हूं
मै बस इतना
पावन था वो
पल भी कितना ..
मां ने आंचल मे
जब अपने
लेकर के
दम घोटा होगा ...
मालूम हुआ होगा
उसको ये ,
कि परिवारो
के बरगद का
तना
खोखला
सड़ा था कितना ...
उसके गर्भ मे
रखा था जो कुछ
सबके दिल से
बड़ा था कितना
...

10 comments:

Unknown ने कहा…

सही जान्च होने से तुम मीडिया के स्वयमभू भगवानो की बनी बनाई कहानी जब पिट रही है तो तुम्हे प्रगति शीलता मे दरारे नज़र आने लगी है.

न्याय को अपना काम करने दो और अभी बच्चे हो जब तुम्हरे बच्चे बडे हो तब तुम कितने प्रगतिशील बने रह्ते हो वो भी देखने लायक होगा.

Gyan Darpan ने कहा…

हरी शर्मा से सहमत

सुधाकर ने कहा…

निरुपमा की हत्या ने इन प्रियभांसु और उसके पत्रकार साथियों को एकदम नंगा कर दिया है, कल तक जो लोग अपने साथी की खाल बचाने के लिये किकिया रहे थे, आज नये परत उधड़ने पर बेशर्मी से शर्मा रहे हैं

आज प्रियभांसु के कब्जे से निरुपमा का लैपटाप मिला जिस पर से प्रियभासे ने सारी सामग्री मिटा दी है. अब यह पता करना है कि प्रियभांसु ने यह साफ सफाई निरुपमा के मरने के बाद की या पहले?

vipul ने कहा…

अब कुछ नहीं होगा। पुलिस तौलेगी जो ज्यादा ताकतवर निकलेगा उसके पक्ष में फैसला आ जाएगा। यानी हत्या अथवा आत्महत्या घोषित कर दिया जाएगा बस

विजय प्रकाश सिंह ने कहा…

दिल्ली मे बैठे अपने मित्रों का गैंग बना कर ऐसी धूल फैलाई गयी है कि निरीह परिवार अपनी बेटी, अपना सम्मान और अपने परिवार का भविष्य सब या तो खो चुका है या खो देने की प्रक्रिया मे है । यहां दिल्ली मे , पत्रकार वर्ग अपने निहित स्वार्थ के बस या प्रियभांसु की चालों की वजह से या बिरादरी का साथ देने के लिए गलत रिपोर्टें मीडिया मे प्लांट कर रहा है ।


साथ ही साथ मुझे यह देख कर आश्चर्य हो रहा है कि देश का युवा पत्रकार वर्ग किस तरह लंपट जैसा व्यवहार कर रहा है । पूरे प्रकरण मे रंजन का चरित्र बेहद संदिग्ध है । कुछ बातें हजम होने वाली नहीं हैं :

१. यह कैसे संभव है कि निरुपमा तीन माह की गर्भवती थी और रंजन को पता ही नहीं था और तो और भा‌ई यह कह रहा है कि शायद निरुपमा को भी नहीं पता था । इस बात पर विश्वास करने के लि‌ए आ‌ई आ‌ई एम सी का प्रोफेसर , छात्र या कम से कम पत्रकार होना बहुत जरूरी है किसी और को यह बात हजम नहीं हो सकती ।

२. आज के युग मे जब परिवार कल्याण के साधन उपलब्ध हैं और वह भी ७२ घंटे बाद तक , उस परिस्थिति मे गर्भ धारण का निर्णय , उसके बाद परिणाम के भयावह होने की स्थिति मे अनभिज्ञता का प्रदर्शन , क्या शब्द लिखा जाय , ऐसे महापुरुष के लि‌ए ।

३. वह व्यक्ति बार बार एस‌एम‌एस दिखा रहा है जो कि निरुपमा ने भेज कर कहा कि तुम को‌ई खतरनाक कदम मत उठाना ( यानी आत्महत्या जैसा ) । इन महाशय का को‌ई कदम या मनोभाव इस स्तर के दुख का लगता तो नहीं है ।

४. जिसके लि‌ए न्याय मांग रहे हैं , उसका अंतिम दर्शन करने भी नहीं गये , अरे अकेले डर रहे थे तो अपने दो चार दोस्त साथ ले लेते , कैसे प्रेमी हो , तुम्हारी प्रेमिका को लगता था कि उसके वियोग में तुम आत्म हत्या तक कर सकते हो और तुम डर के मारे उसका अन्तिम दर्शन करने नहीं गये । क्या निरुपमा ने तुम्हे ठीक से पहचाना नहीं ।

शायद निरुपमा ने सबके - रंजन , उसके परिवार , अपने परिवार और समाज के बारे मे गलत अंदाजा लगा लिया ।और इसकी कीमत अपनी जान देकर चुका‌ई ।

५. रंजन ने शादी के लि‌ए अपने परिवार की रजामन्दी कब ली थी , और ६ मार्च की शादी के लि‌ए क्या अपने पिता का आशीर्वाद ले लिया था ।

६. प्रेम एक बात है , विवाह पूर्व योन संबन्ध दूसरी बात और इस उन्नतशील विचार पुरुष का बिना विवाह के बच्चे का पिता बनने का साहस तो क्रांतिकारी ही कहा जा सकता है ।

७. यह महाशय क्या अमेरिका मे पले बड़े हु‌ए या बिहार मे , भारत मे । क्या हमारे यहां यह एक सामान्य बात है । इनके परिवार की कितनी महिला‌एं या पुरुष अब तक बिना विवाह के माता पिता बन चुके हैं ।

८.हत्या जघन्य है लेकिन उसके लि‌ए परिस्थितियों का निर्माण करने का कार्य किसने किया ? क्या शुतुरमुर्ग की तरह गर्दन जमीन मे धंसा देने से यह देश अमेरिका बन जायेगा ।

प्रभांसु हीरो नहीं है, नहीं है, नहीं है । वह एक कायर है और उसे हीरो की तरह दिखाने का प्रयास निन्दनीय है ।

विजय प्रकाश सिंह ने कहा…

Totally agree with Sudhakar Ji

chandan pandey ने कहा…

सुधाकर जी शायद कुछ तथ्यों से अवगत नहीं है:
१) प्रिय्भान्शु ने सिर्फ यही नहीं कहा की वो गर्भ के बारे में नहीं जानता है बल्कि उसने यह भी कहा की अगर है तो उसे स्वीकार है, वो उसका अपना ही है. यह उसी इंटरव्यू का अंश है जो शर्तिया आपने नहीं देखा होगा.
२) बार बार जो सन्देश वो दिखा रहा है उसका अर्थ बस इतना है कि जो लड़की प्रियभान्शु को कुछ गलत कदम उठाने से मना कर रही है वो खुद कैसे आत्महत्या जैसा काम कर लेगी? हर वक्त अपने को सही ठहराने की आतंकी मानसिकता से आगे निकालेंगे तो आपको स्पष्ट दिखेगा कि इन दोनों के बीच सम्बन्ध सही थे इसलिए अगर निरूपमा ने आत्मह्त्या भी की( जैसा की दबाव की राजनीति से चलने वाले इस देश में ह्त्या को आत्मह्त्या साबित करना ज़रा भी कठिन नहीं है, जैसे जाने किस दबाव में डॉक्टर ने यह कहा कि उसे कुछ आता जाता ही नहीं है, जैसा कि ...) तो उस आत्मह्त्या को उकसाने के लिए जिम्मेदार कौन है? उस लड़की को माँ की बीमारी का झूठ बोल कर घर बुलाया गया था. वो अपने घर में इस तरह कैद थी कि अपने प्रेमी से दो मिनट बात भी नहीं कर पा रही थी, उसके भाई के "अच्छे" दोस्त उस पर निगरानी रख रहे थे, अगर आप पढने की जहमत उठाये तो कई जगह यह बात आई है कि वो बाथरूम में जाकर लडके को सन्देश भेज रही थी. क्या आपको यह ज़रा भी गलत नहीं लगता कि आप उस परिवार को निरीह ठहरा रहे हैं?
३) प्रियभान्शु कोई नायक नहीं है, पर ह्त्या या आत्महत्या में उसका कोइ हाथ नहीं है. आपका तर्क की हत्या का माहौल किसने बनाया? आपके इस तालिबानी तर्क के आगे नतमस्तक होना ही सही है वरना आज तक मैंने नहीं सूना कि प्रेम करना ह्त्या की वजह होती है.

सुधाकर जी, ह्त्या जघन्य अपराध है,और आत्महत्या के लिए उकसाना भी. आशा है अपने समूचे जीवन में आप यह बात नहीं संझेंगे इसलिए आपकी खुशी के लिए बता दूं कि अभी कौशाम्बी में एक पिता ने, अपने भतीजे और भाई संग मिलकर, अपनी बेटी को सोते हुए से उठा कर गन्ने के खेत में ले गया और गंडासे से काट कर उसकी हत्या कर दी, यह उसने कबूला है. आपको जानकार दुःख होगा कि उस खराब लड़की(आपकी समझ के मुताबिक़) की खराब माँ (फिर आपकी ही समझ के मुताबिक़) ने इस अपराध के ल्हिलाफ पुलिस में सिकायत दर्ज कराई. आपके जैसे लोग इसमे तर्क खोजेंगे कि फिर वो प्रेमी कहाँ था? उसने क्यों नहीं दर्ज कराई? या जिस तालिबानी सोच का प्रतीक आपने जाहिर किया है, इश्वर आपका कभी भला ना करे, उसमे आप यह भी सोच सकते है कि लड़की छत पर सोई ही क्यों? लड़की पैदा हुई ही क्यों?

कृपया आपके पास कहने के लिए कोई सुलझी हुई बात होगी तभी जबाव दीजियेगा, वरना हत्या के पक्ष में रखे आपके महान विचार से मैं अवगत हो चुका हूँ.

सुधाकर ने कहा…

चन्दन भाई, अच्छा है कि आप मेरे महान विचार से अवगत हो चुके हैं. मैंने तो सिर्फ खेत के बारे में पूछा आप सारे खलियान के गीत गाते रहे, सही है.

लेकिन आपने यह तो नहीं बताया कि आपके साथी प्रियभांशु ने लैपटाप से सारी सामग्री क्यों मिटा डाली?
कब मिटा डाली?
निरुपमा के जीवित रहते या निरुपमा के मरने के बाद?

अपने साथी से पूछ कर बता दीजियेगा!

chandan pandey ने कहा…

सुधाकर जी, आप खा-म-खा गलत तरीके से बात घुमा रहे हैं. मैं आपके सामने एक नजीर रखता हूँ: आप जानते हैं की भारत वीटो पावर के लिए यूं.एन.ओ में स्थायी सदस्यता का हकदार है, और सारे देश इसकी ताकीद करते हैं पर जब मतदान का मौक़ा आता है तो अमेरिका या चीन कोई ना कोई ऐसा बहना ढूंढ लेते हैं जिससे वो मतदान में हिस्सा नहीं लेते या बायकाट कर देते हैं. कुल मंतव्य यह है कि वे दो देश नहीं चाहते कि भारत स्थायी सदस्य बने, पर वो सीधे सीधे अपने बयान में नहीं कह सकते. इसलिए ऐसे ही बहाने बनाते हैं. और हर बार बहाने बाजी से भारत की सदस्यता को विल्माबित करते जाते हैं. आप मेरी बात के मूल भाव को समझे, जब बात निरुपमा के हत्या की हो रही है, वैसे में इसकी बात कहाँ आती है कि प्रिय्भान्सू के लप टॉप में क्या था? यह बात तो तब आती जब शक की कोई अकेली सुई भी प्रेमी की ओर घूमती. जो प्रिय्भान्शु को सही गलत ठहरा कर बात कर रहे है वो दरसल इस पूरी बात चीत को भटकाना चाह रहे हैं.


अब आपके सवाल के जबाव. २६ अप्रैल को निरूपमा ने प्रियाभान्सू को एस.एम्.एस किया है कि दो दिन बाद मेरी माँ मेरे साथ आ रही हैं तुम मेरा सामान मेरे कमरे में रख देना और लैप टॉप के सारे फोटो / डाटा हटा देना. आप निरूपमा के सन्देश पढ़िए जो उसने प्रियाभान्शु को भेजे हैं उस बीच जब ओ घर गई थी.


पर आप दृढ़ प्रतिज्ञ है कि परिवार निरीह है(ये आपकी नहीं सारे जमाने की मुश्किल होती है कि वो हमेशा ताकतवर के साथ रहना चाहता है) ऐसे में आप वही काम कर रहे हैं जो अमेरिका और चीन भारत के साथ करते हैं. मुझे पता है आपका अगला जबाव होगा कि आप निरूपमा के मामले में भारत/चीन कहाँ से उठा लाये? आप हद से ज्यादा समझदार है, इतने समझदार है कि दो पल के लिए नासमझादारी की अदाकारी करना भी आपको बुरा नहीं लगेगा और आप मेरे सन्देश को ऐसे पढेंगे/पढ़ने का नाटक करेंगे जैसे मैं सचमुच चीन और भारत पर कोई बात कर रहा हूँ. वैसे मैंने आपके आखिरी प्रश्न का उत्तर दे दिया है.

Bhim Kumar Singh ने कहा…

पता नहीं क्या सच है क्या झूट, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि एक युवा संभावना की जान गई है। फिर भी इसके लिए जिम्मेदार लोगों के बारे में टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी क्योंकि संभव है कि सच्चाई का पता कभी न लगे। ठीक वैसे ही जैसे अरुषि के हत्यारों का पता आज तक नहीं चल पाया। रही बात इस पूरे प्रकरण की, तो यह इस देश में कोई नई बात नहीं है। हरियाणा में कुछ ही महीने पहले शादीसुदा एक जोड़े की हत्या कर दी गई थी और इसके लिए मूल रूप से जिम्मेदार खाप पंचायतें अब भी वजूद में हैं और शायद भविष्य में भी रहेंगे। मैं समझता हूं कि इन चीजों पर बहस करना वक्त की बरबादी है। बेहतर यही है कि अपने स्तर पर पूरी ईमानदारी बरती जाए, बहस की जगह कुछ ठोस किया जाए।