मंटो के जन्मदिन पर पिछले साल यह पोस्ट लगाई थी। इस साल नया कुछ नहीं लिख सका सो उसी लेख को थोड़े हेरफेर के साथ लगा रहा हूं- ब्लागर
आज 11 मई है मेरे महबूब अफसाना निगार सआदत हसन मंटो का जन्मदिन। मंटो की एक पंक्ति है-‘‘ मिट्टी के नीचे दफन सआदत हसन मंटो आज भी यह सोचता है कि सबसे बड़ा अफसाना निगार वह खुद है या खुदा। ’’
ये इबारत पढ़कर एकबारगी आपको लगता है कि यह आदमी कितना दंभी और गुरूर में जीने वाला इंसान रहा होगा लेकिन मंटो के चाहने वाले और उन्हें जानने वालों को पता है कि मंटो का व्यक्तित्व दरअसल कैसा था।
मंटो से मेरा परिचय जिस समय हुआ उस समय मेरी उम्र इतनी नहीं थी कि मैं उनके अफसानों उनमें रखे गए विचारों को समझ पाता। उन दिनों मैं मध्यप्रदेश के सीधी जिले में रहता था। मैंने महज 13 की अवस्था में अपने शहर के राजकीय पुस्तकालय से किताब निकलवाई ‘‘ मंटो मेरा दुश्मन’’ जिसे लिखा था उपेंद्रनाथ अश्क ने। अब याद नहीं कि इस किताब को चुनने के पीछे कारण क्या था। शायद इसका उन्वान। इस पुस्तक में मंटो कि कुछ कहानियों के अलावा उनके बारे में अश्क साहब और कृशन चंदर के संस्मरण थे। मंटों की कहानियां उस समय समझ तो नहीं आईं लेकिन उन्होंने जीवन के उस पहलू से परिचय कराया जो कम से कम हमारे समाज में चर्चा के काबिल नहीं समझा जाता। थोड़ा बड़े हुए तो मंटो की कहानियों पर अपने शहर में एक चर्चा आयोजित करवाई जिसका उद्देश्य ही था उनकी कहानियों को समझना। कालेज पहुंचे तो उनकी कहानी टोबा टेक सिंह को आधार बनाकर एक नाटक यूथ फेस्टिवल में खेला गया, उसमें शायद थोड़ा इनपुट खुशवंत सिंह की ट्रेन टु पाकिस्तान से भी लिया था।
बहरहाल यहां इरादा मंटो की जीवनी सुनाने का नहीं है और उनके बारे में बाते करते हुए जाने कितने पन्ने रंगने तो बस उनके जन्मदिन पर लगा कि उन्हें याद कर लिया जाए मेरी ओर से यही उन्हें श्रद्धांजलि।
बीबीसी के सौजन्य से मंटो की कुछ लघु कथाएं
सआदत हसन मंटो की कहानियों की जितनी चर्चा बीते दशक में हुई है उतनी शायद उर्दू और हिंदी और शायद दुनिया के दूसरी भाषाओं के कहानीकारों की कम ही हुई है.
जैसा कि राजेंद्र यादव कहते हैं चेख़व के बाद मंटो ही थे जिन्होंने अपनी कहानियों के दम पर अपनी जगह बना ली यानी उन्होंने कोई उपन्यास नहीं लिखा.
कमलेश्वर उन्हें दुनिया का सर्वश्रेष्ठ कहानीकार बताते हैं.अपनी कहानियों में विभाजन, दंगों और सांप्रदायिकता पर जितने तीखे कटाक्ष मंटो ने किए उसे देखकर एक ओर तो आश्चर्य होता है कि कोई कहानीकार इतना साहसी और सच को सामने लाने के लिए इतना निर्मम भी हो सकता है लेकिन दूसरी ओर यह तथ्य भी चकित करता है कि अपनी इस कोशिश में मानवीय संवेदनाओं का सूत्र लेखक के हाथों से एक क्षण के लिए भी नहीं छूटता.
प्रस्तुत है उनकी पाँच लघु कहानियाँ -
बेखबरी का फ़ायदा
लबलबी दबी – पिस्तौल से झुँझलाकर गोली बाहर निकली.खिड़की में से बाहर झाँकनेवाला आदमी उसी जगह दोहरा हो गया.लबलबी थोड़ी देर बाद फ़िर दबी – दूसरी गोली भिनभिनाती हुई बाहर निकली.सड़क पर माशकी की मश्क फटी, वह औंधे मुँह गिरा और उसका लहू मश्क के पानी में हल होकर बहने लगा.लबलबी तीसरी बार दबी – निशाना चूक गया, गोली एक गीली दीवार में जज़्ब हो गई.चौथी गोली एक बूढ़ी औरत की पीठ में लगी, वह चीख़ भी न सकी और वहीं ढेर हो गई.पाँचवी और छठी गोली बेकार गई, कोई हलाक हुआ और न ज़ख़्मी.गोलियाँ चलाने वाला भिन्ना गया.दफ़्तन सड़क पर एक छोटा-सा बच्चा दौड़ता हुआ दिखाई दिया.गोलियाँ चलानेवाले ने पिस्तौल का मुहँ उसकी तरफ़ मोड़ा.उसके साथी ने कहा : “यह क्या करते हो?”गोलियां चलानेवाले ने पूछा : “क्यों?”“गोलियां तो ख़त्म हो चुकी हैं!”“तुम ख़ामोश रहो....इतने-से बच्चे को क्या मालूम?”
करामात
लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरु किए.लोग डर के मारे लूटा हुआ माल रात के अंधेरे में बाहर फेंकने लगे,कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौक़ा पाकर अपने से अलहदा कर दिया, ताकि क़ानूनी गिरफ़्त से बचे रहें.एक आदमी को बहुत दिक़्कत पेश आई. उसके पास शक्कर की दो बोरियाँ थी जो उसने पंसारी की दूकान से लूटी थीं. एक तो वह जूँ-तूँ रात के अंधेरे में पास वाले कुएँ में फेंक आया, लेकिन जब दूसरी उसमें डालने लगा ख़ुद भी साथ चला गया.शोर सुनकर लोग इकट्ठे हो गये. कुएँ में रस्सियाँ डाली गईं.जवान नीचे उतरे और उस आदमी को बाहर निकाल लिया गया.लेकिन वह चंद घंटो के बाद मर गया.दूसरे दिन जब लोगों ने इस्तेमाल के लिए उस कुएँ में से पानी निकाला तो वह मीठा था.रहे रात उस आदमी की क़ब्र पर दीए जल रहे थे.
ख़बरदार
बलवाई मालिक मकान को बड़ी मुश्किलों से घसीटकर बाहर लाए.कपड़े झाड़कर वह उठ खड़ा हुआ और बलवाइयों से कहने लगा :“तुम मुझे मार डालो, लेकिन ख़बरदार, जो मेरे रुपए-पैसे को हाथ लगाया.........!”
8 comments:
यह सभी कहानियां बीबीसी पर पढ़ी थी... शुक्रिया एक बार फिर से... सहेजकर रखने वाली पोस्ट ....
मंटो मेरे भी सबसे पसंदीदा अफसानानिगार हैं मैंने एक लम्बे अरसे तक उनका लिखा अपने प्रोफाइल में लगाये रखा एक बार फिर से यहाँ रख रहा हूँ :---
"ज़माने के जिस दौर से हम इस वक़्त गुज़र रहे हैं, अगर आप उससे नावाकिफ़ हैं तो मेरे अफ़साने पढ़िए। अगर आप इन अफ़सानों को बर्दाश्त नहीं कर सकते तो इसका मतलब है कि यह ज़माना नाक़ाबिले-बर्दाश्त है। मुझमें जो बुराईयां है, वो इस अहद की बुराईयां हैं। मेरी तहरीर में कोई नुक्स नहीं। जिस नुक्स को मेरे नाम से मंसूब किया जाता है, दरअस्ल मौजूदा निज़ाम का नुक्स है - मैं हंगामा पसन्द नहीं। मैं लोगों के ख़यालातों-ज़ज्बात में हेजान पैदा करना नहीं चाहता। मैं तहजीबो-तमद्दुन की और सोसायटी की चोली क्या उतारूंगा, जो है ही नंगी। मैं उसे कपड़े पहनाने की कोशिश भी नहीं करता, इसलिए कि यह मेरा काम नहीं... लोग मुझे सियाह क़लम कहते हैं, लेकिन मैं तख्ता-ए-सियाह पर काली चाक से नहीं लिखता, सफ़ेद चाक इस्तेमाल करता हूं कि तख्ता-ए-सियाह की सियाही और ज्यादा नुमायां हो जाए। यह मेरा ख़ास अन्दाज़, मेरा ख़ाज तर्ज़ है जिसे फ़हशनिगारी, तरक्कीपसंद और ख़ुदा मालूम क्या-क्या कुछ कहा जाता है - लानत हो सआदत हसन मंटो पर, कमबख्त को गाली भी सलीके से नहीं दी जाती..."
----------- सआदत हसन मंटो "दस्तावेज़" से
इधर उनकी कुछ लघुआ कहानियां हिंद कुञ्ज पर भी मिल जाएँगी...
सागर ने मण्टो की जो पंक्तियां कोट की हें ठीक उन्हीं कारणों से वो हमारे पसंदीदा रचनाकार हें।
thnx apne kuch shandar padne ka moka diya h
मंटो तो अजीज हैं ही। जन्मदिन पर स्मरण करने के लिए धन्यवाद।
सच !! मंटो ... मेरा भी महबूब अफ़सानानिगार. ..
यहाँ देखें .. मंटो की कहानियां :
http://podcast.hindyugm.com/2009/07/hindi-story-aakhen-by-manto-audio.html
http://podcast.hindyugm.com/2009/05/hindi-story-kasauti-by-manto-audio.html
Tx Amitabhji
Sir thanks aapne yaad taaza kar di, manto mere v priya writers mein se ek hain, well sir aapki koi kavita, 'nirumpma ke liye' ke pehle ya baad mein nahi aayi, ek aduri kavita thi jo bahut pehle aayi thi, 'raat ke do baze bheje email ko....' sir wait kar rahe hain..
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