यह एंड आफ एनोसेंस है (उदय प्रकाश का साक्षात्कार-2)


दिनेश श्रीनेत- आज की तारीख में या पहले भी आप रचनात्मक स्तर पर कब इतना दबाव महसूस करते हैं कि यह लगने लगे कि अब कुछ लिख ही देना चाहिए।

उदय प्रकाश- मैं तो शायद यह कहूं कि लेखक जो होता है वह 24 घंटे लेखक होता है।अगर कोई एसी व्यवस्था हो... जैसे लुई बुनुएल की बहुत अच्छी आत्मकथा है- माई लास्ट ब्रेथ। उसमें लुई ने कहा था कि 24 घंटे में आदमी को 20 घंटे सोना चाहिए व स्वप्न देखना चाहिए। बाकी चार घंटे उसे काम करना चाहिए। यह सच है कि सृजन एक स्वप्न है। येहूदा आमीखाई ने लेखक के बारे में लिखा है कि बहुत सक्रिय सर निष्क्रिय धड़ पर रखा है। जब भाषा अधिक हो जाए तो वह चैटर में बदल जाती है। हर कोई बोल रहा है। बड़बड़ा रहा है।

साहित्य में भी यह कल्ट आया है। चैटर में सारे, विशेषण, शब्द व अनुप्रास खप जाते हैं। लेकिन गंभीर डिस्कोर्स जिसमें साहित्य भी एक है। वहां भाषा खर्च नहीं हो रही है। हमारे यहां हो यह रहा है कि कोई समाजशास्त्र पर लिख रहा है तो उसे शरद जोशी सम्मान दिया जा रहा है तथा कोई पुलिस डिपार्टमेंट पर लिख कर शमशेर सम्मान पा रहा है। खेती पर लिखने वाले को मुक्तिबोध सम्मान दिया जा रहा है।

दिनेश श्रीनेत- अगर आप यह मानते हैं कि यह हमारे साहित्य का मौजूदा परिदृशय है तो फिर कहीं न कहीं हमें उसके कारणों की तरफ भी तो जाना होगा। आपके मुताबिक वे कौन से कारण हैं।

उदय प्रकाश- दरअसल एसा परिदृष्य रचा जा रहा है जिसमें साहित्यकारों के स्थान पर फेक्स को स्थापित किया जा रहा है। पहले अच्छे रचनाकार गंभीर संकटों में जीवन बिता रहे थे। अचानक साहित्यिक संस्थानों कल्चरल सेंटर के पास भरपूर पैसा आने लगा है तो उसे लपकने वालों की तादाद भी बढ़ रही है। आइडियोलाजी को दरकिनार कर वामपंथ, दक्षिणपंथ, जनवाद, प्रगतिवाद सब का मकसद है किसी तरह संस्था पर कब्जा जमाना व मनमाफिक खर्च करना। अच्छे खासे संस्थानों में हिंदी साहित्यकारों के गिरोह हैं। हालांकि गंभीर साहित्यकार उसमें शामिल नहीं हैं। यह झुंड आपस में पुरस्कार बांटता मौज मस्ती करता है।

बीते १० सालों में सवा लाख किसान आत्महत्या कर लेते हैं तो कम से कम एक लेखक को तो उत्सव नहीं मनाना चाहिए। यह एज एंड आफ एनोसेंस की है। जनता अब बेवकूफ नहीं हैं। मामूली व्यक्ति भी जानता है कि आप क्या कर रहे हैं। लेखक का काम है लिखना वह सचिन नहीं बन सकता। वह हाशिए पर रहने वाला, एकांत में कागज कलम या कम्प्यूटर पर काम करने वाला व्यक्ति है।

-(.... जारी)-

6 comments:

Rangnath Singh ने कहा…

उदय जी को पढ़ना सदैव रोमांचक होता है। इस साक्षत्कार में भी वो अपने श्रेष्ठ रूप में हैं।

सागर ने कहा…

aage...

डॉ .अनुराग ने कहा…

यार टुकडो में क्यों लिख रहे हो.....थोडा विस्तार से फोंट छोटा करके दो.....दिलचस्प चीजों को टुकडो में नहीं बांटे करते

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

कम शब्‍दों में
गहन अभिव्‍यक्ति।

संदीप कुमार ने कहा…

अनुराग जी आपकी बेकरारी समझ रहा हूं। लेकिन क्या करूं समय नहीं मिल पाता एक साथ इतना टाइप करने का। कोशिश करता हूं कि अगले अंक में पूरा कर दूं।

बेनामी ने कहा…

मुझे लगता है कि आपको आपके वफादार साथी की इज़्ज़त करनी नहीं आती है। आपने अपनी मर्ज़ी से उसे बेच दिया है, फिर आप कैसे कहते हैं कि वह आपका साथ छोड़ गया। आपको वफादार साथी के जाने का उतना अफ़्सोस नहीं, जितना नये लैपटॉप आने की ख़ुशी है। अंकल आप बड़े चालू हैं।
पूजा