राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन का माध्यम बनता रंगपंचमी


मालवा की होली का रंग देश के अन्य इलाकों की होली से जुदा है। देश के ज्यादातर इलाकों में जहां यह रंगीला त्योहार एक दिवसीय कोरम बनकर रह गया है वहीं मालवा निमाड़ अंचल में अभी भी लोग पांच दिन तक रंगों में डूबे रहते हैं। धुलंडी से लेकर रंगपंचमी तक मालवा फगुआ में सराबोर रहता है। इंदौर में होली के अवसर पर यह मेरा पहला साल था। यहां रंगपंचमी को होली पर निश्चित रूप से बढ़त हासिल है। लेकिन यह देखना दुखद है कि किस तरह यहां रंगपर्व का राजनीतिक दुरुपयोग होता है।


होली का त्योहार मालवा यहां नवान्न सेवन से शुरू होता है। गांव के जिन घरों में कोई गमी हो गई हो वहां होली नहीं मनाई जाती। उन परिवारों का दुख बांटने, उन्हें होली के पर्व में शामिल करने के लिए गेर बनाकर लोग उनके घरों को जाते हैं। गेर यानी लोगों का एक समूह जो फाग व भजन गाते हुए उन घरों को जाता है जहां होली नहीं मनाई जा रही।


यहां की होली में पहला दिन होता है होलिका दहन, दूसरा धुलेंडी यानी अबीर गुलाल की मस्ती का आलम, तीसरे-चौथे दिन यही खुमार जारी रहता है। पांचवे यानी रंगपंचमी के दिन यहां पानी और रंग की होली खेली जाती है।


हम बात कर रहे थे गेर की। मुझे यह कहने में संकोच नहीं कि जीवन के इस उत्सव का ठीक अन्य उत्सवों की भांति राजनीतिक अपहरण हो चुका है। दिन में जब राजवाड़ा पहुंचा तो सांस्कृतिक संगठनों के बैनर तले हजारों की संख्या में राजनीतिक कार्यकर्ता जमा हो चुके थे। जबरदस्त गाने बजाने के साथ पहले से तय मार्ग पर गेर की यात्रा निकली। होली की इस यात्रा में शामिल वाहनों में पानी के टैंकर, रंग गुलाल से भरे ड्रम, अश्लील व फूहड़ नाच गाना।


आम आदमी की न्यूनतम भागीदारी वाले इस उत्सव का शातिर इस्तेमाल सांस्कृतिक प्रदूषण फैलाने के लिए यहां सक्रिय दक्षिणपंथी राजनीतिज्ञ कर रहे हैं। जिन्हें इस काम में नशे की आदी बनती जा रही या बनाई जा रही युवा पीढ़ी का जबरदस्त साथ मिलता है ।


साल भर पानी के लिए तरसने वाले उस शहर में जहां पानी के लिए लोग एक दूसरे का खून तक करने में गुरेज नहीं करते वहां रंगपंचमी की गेर में लाखों लीटर पानी सड़कों पर यूं ही बहा दिया जाता है। यह देखना दुखद है कि कैसे आम लोगों के प्रेम का प्रतीक यह त्योहार राजनीतिक विजय जुलूस में तब्दील होता जा रहा है।


2 comments:

संजीव कुमार ने कहा…

हर जगह यही हाल है भाई अब क्या किया जा सकता है?

Dushyant ने कहा…

har jagah ki to nahi kahta lekin haan indore ki kahu to dukhad hai ki pichhale kuchh saalo me jab se satta ke sutra "shiv ji ke nivas sthan" ke hath me aaye hai, is tarah ke aayojano me aisa hona aam baat ho gai hai...mere khyal se sandeep ji ap samajh jayenge mera ishara kis taraf hai....