हम लड़ेंगे साथी


पाश की कविताएं हमारे साथ आखिर क्या करती हैं ...
वे हमारे रोजमर्रा की आवाजों के आदी कानों में सनसनाती हैं एक चीख की तरह...
कुछ देर की हलचल के बाद सब शांत हो जाता है पानी की तरह

हम लड़ेंगे साथी
उदास मौसम के लिए
हम लड़ेंगे साथी,
गुलाम इच्छाओं के लिए
हम चुनेंगे साथी, ज़िंदगी के टुकड़े।
हथौड़ा अब भी चलता है,
उदास निहाई पर
हल अब भी चलता है,
चीखती धरती पर
यह काम हमारा नहीं बनता,
प्रश्न नाचता है।
प्रश्न के कन्धों पर चढ़कर
हम लड़ेंगे साथी।
कत्ल हुए जज्बों की कसम खाकर
बुझी हुई नज़रों की कसम खाकर
हाथ पर पड़े गड्ढों की कसम खाकर।
हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे साथी तब तक
खिले हुए सरसों के फूल को
जब तक बोने वाले ख़ुद नहीं सूंघते
कि सूजी आँखों वाली
गाँव की अध्यापिका का पति
जब तक युद्ध से लौट नहीं आता
जब तक पुलिस के सिपाही
अपने भाइयों का गला घोंटने को मजबूर हैं
कि दफ्तर के बाबू जब तक लिखते हैं लहू से अक्षर
हम लड़ेंगे जब तक
दुनिया में लड़ने की जरूरत है।
जब तक बंदूक न हुई,
तब तलवार होगी
जब तलवार न हुई, लड़ने की लगन होगी
लड़ने का ढंग न हुआ, लड़ने की जरूरत होगी
और हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगेकि अब तक लड़ क्यों नहीं
हम लड़ेंगेअपनी सज़ा कबूलने के लिए
लड़ते हुए जो मर गए
उनकी याद जिंदा रखने के लिए
हम लड़ेंगे साथी।

- पाश

4 comments:

अनिल कान्त ने कहा…

mujhe bahut pasand aayi

Pratibha Katiyar ने कहा…

बहुत सुंदर! पाश की कविताओं का स्वाद लग जाए तो फिर कुछ और नहीं भाता. अच्छा सिलसिला है यह. जारी रखिये.

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा ने कहा…

wakai paash ki kavitayen aaj bhi utni hi saamyik hai

amreen ने कहा…

adhbot h