कोई भूमिका नही बस पाश की ये कविता पढिये ................
मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती
बैठे-बिठाए पकड़े जाना बुरा तो है
सहमी-सी चुप में जकड़े जाना बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नहीं होता
कपट के शोर में सही होते हुए भी दब जाना बुरा तो है
जुगनुओं की लौ में पढ़ना
मुट्ठियां भींचकर बस वक़्त निकाल लेना बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नहीं होता
सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होनासब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना
सबसे ख़तरनाक वो घड़ी होती है
आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो
आपकी नज़र में रुकी होती है
सबसे ख़तरनाक वो आंख होती है
जिसकी नज़र दुनिया को मोहब्बत से चूमना भूल जाती है
और जो एक घटिया दोहराव के क्रम में खो जाती है
सबसे ख़तरनाक वो गीत होता है
जो मरसिए की तरह पढ़ा जाता है
आतंकित लोगों के दरवाज़ों पर
गुंडों की तरह अकड़ता है
सबसे ख़तरनाक वो चांद होता है
जो हर हत्याकांड के बाद
वीरान हुए आंगन में चढ़ता है
लेकिन आपकी आंखों में
मिर्चों की तरह नहीं पड़ता
सबसे ख़तरनाक वो दिशा होती है
जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए
और जिसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा
आपके जिस्म के पूरब में चुभ जाए
मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती ।
पाश .........
8 comments:
बहुत बहुत बहुत अच्छा लगा पाश की कविता को पढऩा. यह मेरी प्रिय कविता है. सचमुच सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना...संदीप जी पाश की कविता आपके ब्लॉग पर खींच लाई. अच्छा ब्लॉग है आपका. चिंता मत करिये, क्लासिक चीजों के कद्रदान हमेशा से कम ही रहे हैं. आपकी रिपोर्ट में कोई गड़बड़ नहीं है. एक बार फिर पाश की कविता के लिए शुक्रिया!
sunder kavita ke liye paashji ko badhaai apka aabhaar
पाश की किताब लहू है कि तब भी गाता है... की भूमिका से कुछ पंक्तियां उधार लेकर और उन्हीं की एक कविता के जरिए अपनी बात कहना चाहूंगा।
वह अलगाव और आत्मकेंद्रण जो आज के कठिन समय में दीमक की तरह आत्माओं को खोखला बना रहा है, पाश की कविताएं उसे नष्ट करने वाले एक कारगर उपकरण की तरह हर बार हाथ लगती हैं। ....
सपने
हर किसी को नहीं आते
बेजान बारूद के कणों में
सोई आग को सपने नहीं आते
बदी के लिए उठी हुई
हथेली के पसीने को सपने नहीं आते
शेल्फों में पड़े
इतिहास-ग्रन्थों को सपने नहीं आते
सपनों के लिए लाजिमी हे
झेलनेवाले दिलों का होना
सपनों के लिए
नींद की नजर होना लाजिमी है
सपने इसलिए
हर किसी को नहीं आते
सपने हर किस
ise padhkar bahut bahut bahut achchha laga
zindgi ke urja sroton ko jhakjhor kar unghne se rokti hai yah kavita pash ki smriti ko salaam
संदीप जी, बहुत ही सुंदर संग्रह है आपका..कुछ आलेख ओर कविताएँ आज पढ़ी,
पाश की कविताओं को आपके यहाँ पढकर मजा आ गया. बाकी धीरे-धीरे पढूंगा..आप ऐसे ही लिखते रहे..मेरी ओर से ढेर सारी शुभकामनाएँ.
alhada.....
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