बजाँ अब दोस्ती में क्या नहीं है
तभी तो दुश्मनी करता नहीं है
बिछ्ड़कर उससे मैंने ये भी जाना
बिछड़ करके कोई मरता नहीं है
मोहब्बत जुर्म इतनी हो गयी अब
हवाओं पे कोई लिखता नहीं है
निकलकर उसके कूचे से ही जाना
सफर के वास्ते रस्ता नहीं है
दिखाओगे किसे लफ्जों में मानी
ग़ज़ल शायद कोई पढता नहीं है
तरक्की बारहा फरमा रही है
गरीबों का हुनर बिकता नहीं है
पेर लागरकविस्त की कविताऍं
3 दिन पहले
1 comments:
Bahut Achche Sandeep Bhai.
Mogenbo Khush Hua.
All The Best.
Siddharth
9993166757
siddharth-bhardwaj@hotmail.com
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