सज्दा करें या आपसे नजरें मिलाये हम
तुमको तुम्ही से कैसे अलग भूल जाएं हम
कोई खुदा नहीं है सरे आसमान में
दुनिया को आओ राज-ए-मोहब्बत सिखाएं हम
खेतों से उठ न पाए कोई बुत-शिकन यहाँ
मिहनत के दोनो हाथों को इतना उठाएं हम
रिश्तों कि वो ज़मीन जो बंजर ही रह गयी
उस पर जहान-ए-गम का कोई घर बसाएं हम
सूरज से सर उठा के कभी बात कर सके
चेहरे को गम की धूप में इतना जलाएँ हम
लुईस ग्लुक की कविताऍं
17 घंटे पहले
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