दिल की नाजुक रग टूटे तो बादल बरसे
सोंधी खुशबू यादों की शबनम को तरसे।
माजी अपना इक-इक गम सुलझा के रखे
शायर माजी इधर-उधर उलझा के रखे
जंगल-जंगल यों कोई बहलाता जाए
अपना घर अपने ही इक आँगन को तरस
चाँद तो डूबा बचपन की फुल्झरियों में
सूरज लेकिन जीवन भर सुलगा के रखे
हम जायेंगे कोई आ जाएगा पल में
वक्त यहाँ किसको बहला-फुसला के रखे
इक ही आलम तेरा मेरा कैसे कहूं
मेरे इक आलम में सारा आलम बरसे.
पेर लागरकविस्त की कविताऍं
3 दिन पहले
1 comments:
good
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