दिल की नाजुक रग टूटे तो बादल बरसे
सोंधी खुशबू यादों की शबनम को तरसे।

माजी अपना इक-इक गम सुलझा के रखे
शायर माजी इधर-उधर उलझा के रखे

जंगल-जंगल यों कोई बहलाता जाए
अपना घर अपने ही इक आँगन को तरस

चाँद तो डूबा बचपन की फुल्झरियों में
सूरज लेकिन जीवन भर सुलगा के रखे

हम जायेंगे कोई आ जाएगा पल में
वक्त यहाँ किसको बहला-फुसला के रखे

इक ही आलम तेरा मेरा कैसे कहूं
मेरे इक आलम में सारा आलम बरसे.