यह कविता मैंने ३० दिसंबर २००६ को लिखी थी जिस दिन सद्दाम हुसैन को फांसी दी गयी थी
की सद्दाम हुसैन को
फांसी पर लटका दिया गया
ठीक उस वक्त
जब सद्दाम को
फांसी दी जा रही थी
शांति का मसीहा जार्ज बुश
खर्राटे भर रहा था अपनी आरामगाह में
सारी दुनिया में
अमन और चैन
सुनिश्चित करने के बाद
वो डूबा हुआ था
हसीं सपनों में
जहाँ मौजूद होंगी
दजला और फरात
जलक्रीडा के अनेक साधनों में
उसकी नवीनतम पहुँच
या की वो खुद बग़दाद के बाजारों में
अपने हथियारों के साथ
संसार के सबसे शक्तिशाली
लोकतान्त्रिक राजा की ओर से
शेष विश्व को ये था
बकरीद और नववर्ष का तोहफा ...
उसकी वैश्विक चिंताओं और करुना का नमूना
जोर्ज डब्लू बुश
इस धरती का सबसे नया भगवान्
पूछ रहा है ...
हमारी अंतिम इच्छा
5 comments:
लोकतंत्र का ठेकेदार होने के बाद
अमेरिका ऐसे कामों को पाक-दिली (?)
से अंजाम देता है ..
संवेदनशील कविता ..
......... आभार ,,,
amrendra ji sahee kah rahe hain aap
अमेरिका अपने आप को भगवान् ही मानने लगा है , उसने कभी भी संयुक्त राष्ट्र संघ समेत किसी को तवज्जो नहीं दी..
इराक़ पर हमला जार्ज़बुश के तानाशाही का एक रूप था..अपने को भगवान समझने की ग़लती कर बैठा था!
सही कहा!!
यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
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