यह समीक्षा मेरे ब्लॉग के लिए साथी मिथिलेश ने लिखी है. वो भास्कर इंदौर में स्पोर्ट्स डेस्क पर हैं.मैंने अभी तक फिल्म देखी नहीं है जल्द ही देखूंगा.
फिल्म एक शाश्वत विषय पर सवाल उठाती है की आखिर कब तक मान बाप बच्चे पर अपनी मर्जी थोपते रहेंगे. वो मौजूदा शिक्षा व्यवस्था को भी कठघरे में खड़ा करती है की किस तरह ऐसे है दबावों के चलते हजारों छात्र हर वर्ष आत्महत्या कर लेते हैं.
कॉलेज के डायरेक्टर वीरू के रूप में बोमन ईरानी ने कमाल का अभिनय किया है. लाइफ एक रेस है का फलसफा सिखाने वाले वीरू आप को हर कॉलेज में दिख जायेंगे.
फिल्म विद्यार्थियों को रट्टू तोता बनाने वाली शिक्षा का जम कर मखौल उडाती है और यह उदहारण भी देती है की रट्टू होना कई बार कितना त्रासद हो सकता है.
माधवन और शर्मन ने अच्छा काम किया है. खास तौर पर इंटरव्यू वाले सीन में शर्मन का ये कहना की बड़ी मुश्किल से ये एटीत्यूड आया है आप अपनी नौकरी रखो मुझे अपना एटीत्यूड रखने दो.
बात चाहे मुन्ना भाई एम् बी बी एस की हो या लगे रहो की हीरानी की फिल्मों में एक सन्देश होता है जो हमें सचेत करता है वो इस बार भी सफल हैं और हाँ आमिर ने ४०+ होने के बाद भी २०-२२ साल के किरदार को पूरी ऊर्जा से निभाया है
हमारे देश में कई ऐसे संस्थान हैं जो बच्चों को तोता बनाने के बजे व्यावहारिक शिक्षा देने पर जोर देते हैं इनमे भोपाल के एकलव्य और आई आई टी कानपुर के विनोद गुप्ता इस दिशा में लम्बे समय से काम कर रहे हैं उम्मीद है अब लोगों का ध्यान उन पर जाएगा.
3 comments:
दिया भाई पांच में पांच !
बढ़िया समीक्षा..जायेंगे देखने!
film ne food for thought diya hai. dekhna yeh hai ki kya three idiots ki philosophy par teen log bhi chal pate hai ya nahe. charity begins at home. apne gharo se hum ek shuruaat karne ke koshish kar sakte hai. nai to AALLL IZZZ WELLL bhaiya...mithilesh nd sandeep ji
(blogging jyada samjhte nai hu, isliye naam ki jagah benami aayega... vaise mein saloni hoon.)
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