शुक्रवार को डाक्टर एपीजे अब्दुल कलाम से मुलाकात करने का अवसर मिला अपने अखबार की ओर से। वे आईआईएम इंदौर के दो दिन के दौरे पर यहां आए हुए हैं। हालांकि पहले दिन मीडिया को औपचारिक निमंत्रण नहीं था लेकिन हम घुसपैठ करने में कामयाब रहे। डाक्टर कलाम ने बच्चों से आग्रह किया कि देश के ग्रामीण इलाकों के विकास में सक्रिय योगदान दें।
जब हम पहुंचे डाक्टर कलाम बच्चों को पुरा प्रोजेक्ट के बारे में अपनी सोच बता रहे थे। इससे पहले मैंने इस प्रोजेक्ट के बारे में सुना नहीं था। इसका पूरा रूप है- प्रोवीजन आफ अर्बन अमिनिटीज इन रूरल एरियाज। अर्थात ग्रामीण इलाकों में शहरी सुविधाएं। उन्होंने बताया कि निजी सार्वजनिक भागीदारी पर आयोजित यह योजना कुछ स्थानों पर सफलतापूर्वक चल रही है। जिसमें 20-30 गांवों के एक समूह को चिह्नित कर उसे एक स्वावलंबी टाउनशिप के रूप में विकसित किया जाता है। इस पुरा में नालेज सेंटर, एग्री क्लीनिक्स, टेली एजुकेशन , टेली मेडिसिन, वाटर प्लांट कोल्ड स्टोर आदि की समुचित व्यवस्था के साथ साथ लोगों को स्किल्ड वर्कर के रूप में ट्रेंड भी किया जाता है।
उन्होंने आईआईएम इंदौर से आग्रह किया कि पुरा को वह पाठ्यक्रम में शामिल करे। इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि देवास और झाबुआ जैसे नजदीकी इलाकों में ऐसे पुरा स्थापित कर उनका प्रबंधन आईआईएम के बच्चों को सौंपा जाना चाहिए;
डाक्टर कलाम ने हालांकि पुरा परियोजना को पॉवर प्वाइंट की मदद से काफी बेहतर ढंग से समझाया लेकिन फिर भी कुछ सवाल अनुत्तरित रह गए। मसलन,
यदि पुरा में पंचायती संस्थाओं की क्या भूमिका होगी ?
क्या वे निजी क्षेत्र के साथ मिलकर काम करेंगी ?
उनके अधिकारों का बंटवारा किस तरह होगा ? आदि आदि।
इसके अलावा मेरे मन में यह सवाल भी उठा कि आखिर निजी क्षेत्र को सुदूर ग्रामीण इलाकों में ऐसे धर्माथ दिख रहे काम में क्या रुचि होगी? अगर वह इसमें रुचि लेता है तो क्या यह भू माफिया को परोक्ष समर्थन और बढ़ावा नहीं होगा?
डाक्टर कलाम के साथ पुरा परियोजना पर काम कर रहे आईआईएम अहमदाबाद के पासआउट सृजन पाल सिंह भी थे। ये वही सृजन हैं जो कुछ अरसा पहले सक्रिय राजनीति में आने की इच्छा जता कर सुर्खियों में आए थे। उन्होंने लंबे चैड़े पैकेज के बजाय कलाम के साथ कुछ सार्थक काम करने को तरजीह दी है।
रोचक - चाय के दौरान मुझे कलाम साहब से बातचीत का मौका मिला। मैंने उनसे पूछा कि आमतौर पर उनके लेक्चर आईआईएम और आईआईटी जैसे बड़े संस्थानों में ही क्यों होते हैं क्यों नहीं वे छोटी जगहों के सरकारी स्कूल कालेजों में जाते? इसपर कलाम साहब का जवाब काफी मजेदार था। उन्होंने जोर देकर कहा कि वे छोटे कालेजों में भी जाते हैं। उन्होंने कुछ छोटे कालेजों के नाम गिनाए जिनमें मैं सिर्फ सेंट जेवियर कालेज का नाम ही ध्यान रख पाया। बाकी नाम चूंकि मैंने सुने नहीं थे कभी इसलिए वे मेरी स्मृति से निकल गए।
4 comments:
बढ़िया उप्लबद्धि है, मित्र। ब्लॉग के किसी कोने में पोस्ट कर स्लाईड शो भी साथियो को दिखाओ।
ऐसे ही कुछ क्षण होते हैं जिनके बारे में कहा जाता है उजाले उनकी यादों के.बधाई.
badhiya likha hai...
दोस्त दिल से बधाई, दिल से इस कारण क्योंकि केवल बधाई तो इस बाजारू दुनिया में लोगों को बात-बात पर देता हूं।
करियर की बात छोड़ो, जीवन के लिए यह एक महत्वपूर्ण क्षण है जब तुम कलाम से मिले और बात की। मेरे अनुसार वे ज्ञान की गंगा हैं। खैर, मेरी रूचि पुरा प्रोजेक्ट में हैं। सच कहूं दोस्त इस बात को लोगों को समझाओ, विस्तार से पुरा के बारे में बताओ।
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