बिहार यात्रा वृत्तांत






अजीत सर की शादी में अरसा बाद बिहार जाना हुआ. गया नालंदा, नवादा इन जगहों पर खूब घूमे. पहले के मुकाबले जबरदस्त ढंग से बदली है बिहार की तस्वीर. गया से हसुआ तक का ४५ किमी का सफ़र बस से महज १ घंटे में तय हो गया वो भी जगह जगह रुकते हुए. क्या शानदार रोड थी एकदम चिक्कन. गाडी सरपट भाग रही थी.

सर की शादी २ तारीख को थी खूब डांस वांस किये हम लोग. रात में देर तक जग कर पूरब की शादी देखी. वहां से महावीर स्वामी का अंतिम संस्कार स्थल पावापुरी एकदम पैदल दूरी पर था सो सुबह सात बजे जा पहुंचे वहां. जलमहल में महावीर के पद चिन्हों के दर्शन किये और ढेर सारे मंदिरों का भ्रमण किया.

करीब १२ बजे बारात लौटी और २ बजे एक बार फिर सर को साथ लेकर हम लोग राजगीर-नालंदा की ओर कूच कर गए. राजगीर के गरम कुण्ड को लेकर मन में तरह तरह की जिज्ञासाएं थीं की आखिर वहां पानी गरम कैसे रहता है? गोलमोल पहाडी रास्तों से गुजरते हम राजगीर पहुँच तो गए लेकिन गर्म कुण्ड का गन्दला पानी देख कर मन घिन्ना गया सो नहाने का प्लान आम सहमती से रद्द कर दिया गया. राजगीर में हमने खाना भी खाया. उसकी गजब व्यवस्था थी. वहां ढेर सारे परिवार चूल्हा और बर्तन उपलब्ध कराते हैं आप अपना राशन लेकर जाइये जो मर्जी पका कर खाइए. उन्हें बस चूल्हे और बर्तन का किराया दे दीजिये.

कुण्ड की ओर जाते हुए एक अजीब बात देखी. वहां एक तख्ती पर लिखा था माननीय पटना उच्च न्यायलय के आदेश से कुण्ड में मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित है. तमाम कोशिशों के बावजूद मैं इस बारे में ज्यादा मालूमात हासिल हीं कर सका.

अगला पड़ाव था नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष. शाम करीब ४ बजे हम वहां पहुंचे लेकिन तब तक कुछ साथियों की हिम्मत पर नींद और रात की थकन हावी हो चुकी थी सो उन्होंने गाडी में आराम करने का फैसला किया और हम ३-४ लोग जा पहुंचे नालंदा विवि के खंडहरों के स्वप्नलोक में. मन में बौध कालीन ज्ञान विज्ञानं के विकास की स्मृतियाँ कौंधने लगीं. हमने उसे जी भर के निरखा. विवि की १५०० पुरानी बसावट की व्यवस्था- कमरे, स्नानागार, भोजन कक्ष और विहार आदि को देख कर अपने शहरों की अनियोजित बनावट का ध्यान आ गया. लगा की हम विकास क्रम के कुछ मूल्यों में पीछे तो नहीं जा रहे हैं.

नालंदा विवि के बारे में सुन रखा था की आतताइयों के आग लगाने के बाद वहां रखी पुस्तकें ६ महीने तक जलती रही थीं. वहां १०००० से अधिक देशी विदेशी छात्र शिक्षा लेते थे जिन्हें प्रारंभिक प्रवेश परीक्षा में द्वारपाल के प्रश्नों का जवाब देना पड़ता था. आँखें वहां आये पर्यटकों में व्हेनसांग और फाहियान को ढूँढने लगीं.

स्थानीय साथियों ने बताया की सुनसान रास्ता है और ज्यादा देर करना ठीक नहीं. इस तरह समय के अभाव में हम वापस लौट आये.

गूगल और अपने मोबाइल की मदद से ली गयी तस्वीरें लगा रहा हूँ दोस्त डिजिटल कैमरे से ली गयी तस्वीरें जैसे ही मेल करेगा ढेर सारी आप की नजर करूँगा ..... --

2 comments:

करण समस्तीपुरी ने कहा…

बदली है बिहार की तस्वीर. गया से हसुआ तक का ४५ किमी का सफ़र बस से महज १ घंटे में तय हो गया वो भी जगह जगह रुकते हुए. क्या शानदार रोड थी एकदम चिक्कन. गाडी सरपट भाग रही थी.

हम ३-४ लोग जा पहुंचे नालंदा विवि के खंडहरों के स्वप्नलोक में. मन में बौध कालीन ज्ञान विज्ञानं के विकास की स्मृतियाँ कौंधने लगीं. हमने उसे जी भर के निरखा. विवि की १५०० पुरानी बसावट की व्यवस्था- कमरे, स्नानागार, भोजन कक्ष और विहार आदि को देख कर अपने शहरों की अनियोजित बनावट का ध्यान आ गया. लगा की हम विकास क्रम के कुछ मूल्यों में पीछे तो नहीं जा रहे हैं.

भाई साहब,
आपका पोस्ट पढ़ कर ऐसा लगा जैसे बैसाख की तपती दोपहरी में वट-वृक्ष की शीतल छाया मिल गयी हो.... वर्ना बिहार और हम बिहारियों के हिस्से तो क्या आते हैं.... वो विश्वविदित है. दिल को शकुन मिला आपका पोस्ट पढ़ कर और कुछ ज्यादा ही कुछ इसलिए कि मुझे भी अर्शे हो गए बिहार की सड़कें देखे.... किन्तु आपके वृत्तांत ने हर्ष के साथ साथ गौरव की भी अनुभूति दिया... ! बहुत बहुत धन्यवाद !!

शशिभूषण ने कहा…

मुझे भी तो होना था बरातियों में.यहाँ से सबकुछ का अनुमान कर और कचोट हो रही है.नौकरी कितना छीन भी लेती है...अजीत जी को मेरी भी बधाई मिले.