मेरी आवाज ही पहचान है गर याद रहे...

अगर किसी पूजा घर में जलते दिये की रोशनी और घंटियों की पवित्र आवाज को मिला कर इंसानी सूरत में बदला जाए तो शायद वह कुछ-कुछ लता मंगेशकर की सी तस्वीर होगी। वही लता, जिसके बारे में एक दफा उस्ताद बड़े गुलामअली खां ने कहा था, "कमबख्त कभी गलती से भी बेसुरा नहीं गाती।" अपनी आवाज के अलावा क्या ये नाम किसी और परिचय या उपमा का मोहताज है?
चालीस के दशक में पिता दीनानाथ मंगेशकर की मौत के बाद 13 वर्ष की अल्प आयु में सिनेमा से जुड़ने वाली लता ने सन 1945 में मुंबई का रुख किया और उस्ताद अमानतअली खां भिंडी बाजार वाले से शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू किया लेकिन विभाजन के दौरान खां साहब पाकिस्तान चले गए। इसके बाद लता ने अमानत खां देवासवाले से संगीत की शिक्षा लेनी प्रारंभ की। पंडित तुलसीदास शर्मा और उस्ताद बड़े गुलामअली खां जैसी जानी मानी शख्सियतों ने भी उन्हें संगीत सिखाया। लता ने जिस समय हिंदी फिल्मों में गायिकी की शुरुआत की उस दौरान नूरजहां, शमशाद बेगम और जोहरा बाई अंबालेवाली जैसी गायिकाओं का वर्चस्व था। ऐसे में संगीतकार गुलाम हैदर ने सन 1948 में लता को अपनी फिल्म शहीद में गाने का मौका देना चाहा लेकिन निर्माता शशधर मुखर्जी ने लता की आवाज को बेहद पतली कह कर खारिज कर दिया। नाराज हैदर ने कहा कि एक दिन हिंदी सिनेमा के निर्माता निर्देशक लता के पास जाकर उनसे अपनी फिल्मों में गीत गाने की भीख मांगेंगे।सन 1949 में आई फिल्म (महल) के गीत 'आएगा आने वाला..' से लता ने पहली बार लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। इस गीत को अपार लोकप्रियता हासिल हुई। उसके बाद तो इतिहास गवाह है कि 60, 70, 80, 90 के दशक में फिल्म जगत पर लता और उनकी बहन आशा ने ऐसा दबदबा कायम किया कि उस दौर किसी अन्य गायिका का लोगों को नाम तक याद न रहा।ये मशहूर वाकया कौन नहीं जानता कि सन 1962 में चीन के साथ हुई लड़ाई के बाद जब एक कार्यक्रम में लता ने पंडित प्रदीप का लिखा 'ऐ मेरे वतन के लोगों..' गाया तो तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की आंखों से आंसू निकल पड़े।तत्कालीन मध्यभारत प्रांत के इंदौर शहर में 28 सितम्बर 1929 को जन्मीं लता के पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर शास्त्रीय गायक थे और वे रंगमंच से भी जुड़े थे। गोवा स्थित अपने पैतृक गांव मंगेशी की स्मृति में उन्होंने अपने नाम में मंगेशकर जोड़ा। आरंभ में लता को हेमा नाम दिया गया था लेकिन बाद में उनके पिता ने अपने एक नाटक 'भावबंधन' की नायिका लतिका के नाम पर उन्हें लता नाम दिया। अपने चारों भाई बहनों हृदयनाथ, आशा, ऊषा और मीना में सबसे बड़ी लता बेहद धार्मिक स्वभाव की हैं। लता पर 'इन सर्च ऑफ लता मंगेशकर' नाम से किताब लिखने वाले हरीश भिमानी ने अपनी किताब में लता के कई अनछुए पक्षों को उजागर किया है। जैसे कि लता को फोटोग्राफी का बेहद शौक है यहां तक कि वे कोई तस्वीर देख कर यह तक बता देती हैं कि इसे खींचने में किस कैमरे का प्रयोग किया गया था।संगीत जगत में अविस्मरणीय योगदान के लिए लता को सन 1969 में पद्मभूषण और सन 1999 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया। सन 1989 में उन्हें फिल्म जगत का सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार और सन 2001 में देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न दिया गया।