राजस्थान की लोक कथाओं को नए सिरे से लिखकर कर उनमें समकालीन चेतना और
आधुनिकता का बीज रोपने वाले अनूठे कथाकार विजयदान देथा का रविवार को दिल का
दौरा पडऩे से निधन हो गया। वह 87 वर्ष के थे। उन्होंने जोधपुर के पास उसी
बोरूंदा गांव में अंतिम सांस ली जहां रहकर उन्होंने ताउम्र ऐसी रचनाएं रचीं
जिन्होंने देश और दुनिया में उन्हें अलग कद प्रदान किया।
'बिज्जीÓ के नाम से मशहूर रहे देथा के परिवार में तीन पुत्र और एक पुत्री हैं। लोक भाषा की कथाओं की अनूठी व्याख्या करने वाले वह अपनी तरह के विलक्षण रचनाकार थे और उन्होंने तकरीबन 800 से अधिक लघुकथाओं की रचना की। चूंकि अधिकतर लघुकथाओं के मूल में या उनका आधार राजस्थान की मिट्टïी में यहां वहां बिखरी लोक कथाएं थीं इसलिए यह कहा जा सकता है कि उन्होंने अतीत के और वर्तमान साहित्य के बीच एक सेतु की तरह काम किया और वह उन कहानियों को समकालीन संदर्भों के साथ पाठकों के सामने लाए। उनके करीबी विनोद विठ्ठïल ने कहा, 'उन्होंने इन कथाओं को दस्तावेजी स्वरूप दिया।Ó
यह जान लेना आवश्यक है कि देथा ने अपनी तकरीबन सभी रचनाएं राजस्थानी भाषा में ही रचीं और बाद में हिंदी में अनूदित हुईं। साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित विजेता देथा को पिछले साल राजस्थान रत्न पुरस्कार से विभूषित किया गया था।
सुप्रसिद्घ हिंदी साहित्यकार उदय प्रकाश ने सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक पर देथा को अत्यंत आत्मीयता से याद करते हुए लिखा, 'वह महानतम व्यक्तित्व जिसने वर्णव्यवस्था के विष से बजबजाते समाज की घृणा, उपेक्षा, षडय़ंत्र और अपमानों के बीच सृजन के उन शिखरों को नापा, जिन तक पहुंचना तो दूर, तमाम सत्ता-पूंजी की ताकतों से लदे-पदे लेखकों की दृष्टि तक नहीं जा सकती ...जो अपने जीते जी, जोधपुर से 105 किलोमीटर दूर बोरुंदा गांव में रहते हुए, एक ऐसा पवित्र पाषाण बना, जिसे छूना हमारे समय के विभिन्न कलाओं के व्यक्तित्वों के लिए, किसी तीर्थ जैसा हो गया....मणिकौल, प्रकाश झा, अमोल पालेकर से लेकर कई फिल्मकार पैदल चल कर इस रचनाकार की ड्योढ़ी तक पहुंचे और उनकी कहानियों पर अंतरराष्टï्रीय ख्याति की फिल्में बनाईं।
उनकी कहानी 'दुविधाÓ पर आधारित फिल्म 'पहेलीÓ उनकी रचना पर बनी अंतिम फिल्म थी। इससे पहले मणि कौल उस कहानी पर दुविधा नाम से ही एक फिल्म का निर्माण कर चुके थे जबकि प्रकाश झा ने उनकी कहानी पर परिणति नामक फिल्म बनाई थी। देश के शीर्षस्थ रंगकर्मियों में से एक हबीब तनवीर ने देथा की लोकप्रिय कहानी 'चरणदास चोरÓ को नाटक का स्वरूप प्रदान किया था जो अत्यंत लोकप्रिय साबित हुआ। इतना ही नहीं श्याम बेनेगल ने इस पर एक फिल्म भी बनाई थी। 'बातां री फुलवारीÓ नामक उनके लघुकथा संग्रह को विश्व स्तर पर सराहना मिली थी।
इस बीच जयपुर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने देथा के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि देथा ने राजस्थानी कथाओं और साहित्य के क्षेत्र में अद्भुत और आश्चर्यजनक योगदान दिया। बिज्जी अपने शरीर को भले ही त्याग गए हों लेकिन जब-जब 20 वीं सदी के कथा साहित्य का जिक्र होगा, उन्हें जरूर याद किया जाएगा।
'बिज्जीÓ के नाम से मशहूर रहे देथा के परिवार में तीन पुत्र और एक पुत्री हैं। लोक भाषा की कथाओं की अनूठी व्याख्या करने वाले वह अपनी तरह के विलक्षण रचनाकार थे और उन्होंने तकरीबन 800 से अधिक लघुकथाओं की रचना की। चूंकि अधिकतर लघुकथाओं के मूल में या उनका आधार राजस्थान की मिट्टïी में यहां वहां बिखरी लोक कथाएं थीं इसलिए यह कहा जा सकता है कि उन्होंने अतीत के और वर्तमान साहित्य के बीच एक सेतु की तरह काम किया और वह उन कहानियों को समकालीन संदर्भों के साथ पाठकों के सामने लाए। उनके करीबी विनोद विठ्ठïल ने कहा, 'उन्होंने इन कथाओं को दस्तावेजी स्वरूप दिया।Ó
यह जान लेना आवश्यक है कि देथा ने अपनी तकरीबन सभी रचनाएं राजस्थानी भाषा में ही रचीं और बाद में हिंदी में अनूदित हुईं। साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित विजेता देथा को पिछले साल राजस्थान रत्न पुरस्कार से विभूषित किया गया था।
सुप्रसिद्घ हिंदी साहित्यकार उदय प्रकाश ने सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक पर देथा को अत्यंत आत्मीयता से याद करते हुए लिखा, 'वह महानतम व्यक्तित्व जिसने वर्णव्यवस्था के विष से बजबजाते समाज की घृणा, उपेक्षा, षडय़ंत्र और अपमानों के बीच सृजन के उन शिखरों को नापा, जिन तक पहुंचना तो दूर, तमाम सत्ता-पूंजी की ताकतों से लदे-पदे लेखकों की दृष्टि तक नहीं जा सकती ...जो अपने जीते जी, जोधपुर से 105 किलोमीटर दूर बोरुंदा गांव में रहते हुए, एक ऐसा पवित्र पाषाण बना, जिसे छूना हमारे समय के विभिन्न कलाओं के व्यक्तित्वों के लिए, किसी तीर्थ जैसा हो गया....मणिकौल, प्रकाश झा, अमोल पालेकर से लेकर कई फिल्मकार पैदल चल कर इस रचनाकार की ड्योढ़ी तक पहुंचे और उनकी कहानियों पर अंतरराष्टï्रीय ख्याति की फिल्में बनाईं।
उनकी कहानी 'दुविधाÓ पर आधारित फिल्म 'पहेलीÓ उनकी रचना पर बनी अंतिम फिल्म थी। इससे पहले मणि कौल उस कहानी पर दुविधा नाम से ही एक फिल्म का निर्माण कर चुके थे जबकि प्रकाश झा ने उनकी कहानी पर परिणति नामक फिल्म बनाई थी। देश के शीर्षस्थ रंगकर्मियों में से एक हबीब तनवीर ने देथा की लोकप्रिय कहानी 'चरणदास चोरÓ को नाटक का स्वरूप प्रदान किया था जो अत्यंत लोकप्रिय साबित हुआ। इतना ही नहीं श्याम बेनेगल ने इस पर एक फिल्म भी बनाई थी। 'बातां री फुलवारीÓ नामक उनके लघुकथा संग्रह को विश्व स्तर पर सराहना मिली थी।
इस बीच जयपुर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने देथा के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि देथा ने राजस्थानी कथाओं और साहित्य के क्षेत्र में अद्भुत और आश्चर्यजनक योगदान दिया। बिज्जी अपने शरीर को भले ही त्याग गए हों लेकिन जब-जब 20 वीं सदी के कथा साहित्य का जिक्र होगा, उन्हें जरूर याद किया जाएगा।
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