डा बिनायक सेन की जाति क्या है? यह कमाल का सवाल पता नहीं अब तक कितने लोगों के जेहन में आया है। बहरहाल, मेरा साबका इस सवाल से आज सुबह पड़ा। मेरी बुआ के बेटे जो कभी आरएसएस के एकनिष्ठ प्रचारक हुआ करते थे। भारत वर्ष के अटलकाल में उन्हें इस निष्ठा का फल मिला। अब उनके पास एक गैस एजेंसी के साथ एक पत्नी व एक संतान भी है। खैर, उनकी तरक्की? पर बात फिर कभी सही अभी कुछ दूसरी बात।
आज सुबह सुबह भाई साहब का फोन आया। "दिल्ली आया हुआ हूं। अक्षरधाम मंदिर से निकला हूं। तुम्हारे घर कैसे आना है बतावो।" हमने हड़बड़ी में कह दिया कि मंगलम के आगे प्रेस अपार्टमेंट आ जावो वहीं मिलता हूं। मैं अभी निकल ही रहा था कि दोबार फोन आ गया। मैं समझ गया कि वो आ चुके हैं। उनकी कार का मुंह प्रेस अपार्टमेंट की तरफ था। मैं उन्हें निराश करता हुआ सामने विनोद नगर की सर्वहारा कालोनी से प्रकट हुआ। खेद सहित उनको सूचित किया कि कार विनोद नगर की तंग गलियों में नहीं जा पाएगी। कुछ अपसेट से दिखते भाई साहब पैदल मेरे साथ घर आए।
अम्मा बाबूजी को दंड प्रणाम करने के बाद उनने हमसे सवाल दागा? क्योंजी "तुम्हारे" बिनायक सेन की जाति क्या है? हमने भी कह दिया आप रायपुर में रहते हो "अपने" पुलिसिया हाकिमों से पूछ लो? ये जवाब उनके रिसीविंग प्रोग्राम में फीड नहीं था यानी अनएक्सपेक्टेड था। मामला संभालते हुए उन्होंने कहा नहीं उसकी बीबी के नाम से लगता है कि वह क्रिस्तान है...
मैं उनकी इस अदा पर मर मिटा लेकिन आगे कुछ कहने का मौका नहीं दिया उन्होंने, तुरत मेरी किताबों की आलमारी से लेनिन की "इंपीरियलिज्म द हाइएस्ट स्टेट आफ कैपिटलिज्म" निकाली। उसे पलटा गहरी आंखों से मेरा जायजा लिया। बाबूजी के पास गए। कुछ देर फुसफुस करने के बाद बोले अपने बियाव करले, बाबू बियाव।
मैं अभी लेनिन की किताब से अपने ब्याह का कनेक्शन जोड़ ही रहा था कि वे पास आ गए। देख बाबू तू अभी बच्चा!! है। हमने भी संगठन में काम किया है लेकिन अंत में यही समझे कि मां बाप की मर्जी से ही जीवन का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।
मैंने उनके बियाव लेक्चर को उतनी ही तवज्जो दी जितनी देनी चाहिए थी। दो घंटे की संक्षिप्त यात्रा में उनने क्यूबा से लेकर वेनेजुएला तक व सलवा जुडुम से लेकर मनमोहनामिक्स तक मेरा ज्ञान बढ़ाया। अभी वे गोंडवाना एक्सप्रेस में होंगे... मैंने पक्का किया है कि उनके रायपुर पहुंचते ही उनसे बिनायक सेन की जाति!!!! पूछूंगा पक्का।
पेर लागरकविस्त की कविताऍं
3 दिन पहले
3 comments:
क्रिश्चियन नहीं होना चाहिए, क्योंकि विनायक अगर क्रिश्चियन होते तो उनके ऊपर माओवादियों का साथी होने का आरोप नहीं लगता। तब यह मामला बनता है कि वह आदिवासियों को ईसाई बनाने के लिए आदिवासी इलाकों में सेवा का ड्रामा कर रहे थे और व्यापक पैमाने में धर्मांतरण कर रहे थे, जिससे स्थानीय लोगों में रोश था।
संभावना क्रिश्चियन होने की ज्यादा है क्योंकि इनकी शिक्षा सीएमसी वेल्लोर में हुई है ।
किसी हिन्दू की तो पश्चिमी इतना फिक्र करने वाले नहीं
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