नया साल आ गया

एक और नया साल आ गया
मैं खुश हूं
जी लिया एक और बरस
बिना किसी खास परेशानी के
और शायद...
बिना किसी मकसद के भी

कितना अच्छा गुजरा बीता साल
न तो मैं किसी दुर्घटना का शिकार हुआ
न फंसा किसी झंझट में बेवजह
किसी ने नहीं देखा मुझे घूस लेते हुए
और ना ही छेड़ा किसी ने जवान होती बेटी को

ओ मेरे भगवान
आने वाले साल में भी बरकरार रखना मेरी ये खुशियां
मैं जिंदगी से बहुत ज्यादा कुछ नहीं चाहता

3 comments:

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) ने कहा…

वाह क्या बात है संदीप जी सकारात्मकता और आशा वाद ही जीवन जीने की कला है और परिवर्तन ही प्रकर्ति है नवीनता नवयोवंता ही जीवन है
बहुत ही बेहतरीन कविता बधाई
सादर
प्रवीण पथिक

डॉ .अनुराग ने कहा…

गोया !!खूब कहा ....

चन्दन ने कहा…

बहुलार्थी है। एक तरह से देखें तो जो यों ही जीवन जी लेते हैं बिना कुछ किये धरे, उन पर एक करारा व्यंग्य।