कल शाम रिंग रोड पर मेरे साथ हुए हादसे ने मेरी इस धारणा को और बल दिया की में दिल्ली दिलवालों की तादात अब उतनी नही रही ।
हुआ यूँ की मैं शाम लगभग ६.३० बजे लाजपत नगर मार्केट से वापस लौट रहा था फ्लाई ओवर के नीचे से सफदरजंग एन्क्लावे स्थित अपने फ्लैट लौटने के लिए मैं यू टर्न ले रहा था तभी एक कार ने पीछे से टक्कर मार दी. एक पल को तो समझ ही नही आया की क्या हुआ ? मैं एक दम लहराता हुआ आगे की और सर के बल गिरा. हेलमेट के कारण सर तो बच गया लेकिन हाथ पैर में जम कर चोट लगी. मैं उठ नही पा रहा था सामने कुछ छुट्टे पैसे सौ का एक नोट और मेरा एटीएम कार्ड पडा हुआ था .................जाने किसने तो आकर उठाया.
सड़क पर संज्ञा शून्य बैठा हुआ मैं देख रहा था की मेरे अगल बगल से गुजर रही कारों में बैठे लोगों की नज्में कैसी झुंझलाहट थी उनके बस में होता तो शायद वो कुचल के आगे चले जाते.....
मुझे ठोकने वाली कार जिसमें दिल्ली की कोई एलीट फॅमिली सवार थी भागने की फिराक में थी मैंने लडखडाते कदमों से ही सही उसे रोकने की कोशिश की. लेकिन वो भाग गए. वहां खड़े कुछ रिक्शा चलाने वालों ने मुझे किनारे ले जाकर बिठाया. मैंने १०० नम्बर पर फ़ोन भी किया लेकिन ना किसी को आना था न आया.
वहां से किसी तरह गाडी चला कर हम डॉक्टर के यहाँ गए ड्रेसिंग करवाई। रात में मैं यही सोचता रहा की अमीरी लोगों को किस कदर लोग संवेदनहीन बनाती जा रही है। मुझे पता है की उस कार सवार ने मेरी हत्या कराने के इरादे से टक्कर नही मारी थी, लेकिन क्या वो रुक कार दो मिनट मुझे देख नही सकता था क्या उसके पास इतना वक्त नही था की रुक कार हाल चाल ले लेता। मेरे लिए इतना बहुत था। लेकिन मेरी मदद के लिए आगे आए दो रिक्शा खींचने वाले।
इस घटना ने एक बार फ़िर एहसास करा दिया की दिल्ली वालों का दिल अब अपनी जगह बदल चुका है। यहाँ के अमीरों के दिल तो जाने कब के बनियों के यहाँ गिरवी रखे जा चुके हैं...........
..............उनके बात करने के लहजे से पता चल रहा था की दोनों बिहार के हैं लेकिन बीच सड़क पर बेसुध पड़े हम दोनों को उठाते हुए उन्होंने एक बार भी नही पूछा की हम महाराष्ट्र के हैं या गुजरात या तमिलनाडू के....सुन रहे हो न राज ठाकरे......................