
बरसात के बहाने कुछ और

अंतिम इच्छा
फिल्म समीक्षा : थ्री इडियट्स

मुझे पता था तुम्हारा जवाब

आने वाले कल का आईना है अवतार

क्या है कहानी
अल्फा नाम के सितारे का चक्कर लगा रहे एक ग्रह पोलिफेमस के उपग्रह पैंडोरा के जंगलों में इंसान को दिखते हैं अकूत संसाधन... बस शुरू हो जाता है, इंसान का मिशन − प्रोग्राम अवतार, जिसमें भाग लेने के लिए जेक सुली को भी चुना जाता है... जेक पुराना नौसैनिक है − चोट खाया हुआ और कमर के नीचे अपाहिज... उसे बताया जाता है कि इस मिशन के बाद वह अपने पांवों पर चल सकेगा... लेकिन मिशन आसान नहीं है, क्योंकि पैंडोरा की हवा में इंसान सांस नहीं ले सकते। इसके लिए तैयार किए जाते हैं 'अवतार' − जेनेटिकली तैयार ऐसे इंसान, जो वहां जा सकें। इस नए जिस्म के साथ पैंडोरा में चल सकेगा जेक...लेकिन दूसरी तरफ पैंडोरा के मूल वासी भी हैं − 'नै वी', जिन्होंने अपनी दुनिया को ज्यों का त्यों बनाए रखा है... वे आदिम लगते हैं, लेकिन अपनी धरती को बचाने के लिए लड़ सकते हैं। इस जंग में मालूम होता है कि 'नै वी' कई मामलों में इंसानों से आगे हैं।आगे की कहानी इसी से जुड़े रोमांचक टकराव की कहानी है, लेकिन फिल्म सिर्फ जंग पर खत्म नहीं होती। उसमें एक कहानी मोहब्बत की भी है। पैंडोरा के जंगलों में दाखिल होते जेक के सामने खतरे भी आते हैं और खूबसूरत चेहरे भी। यहीं उसे मिलती है नेयित्री... साल सन् 2154... अपनी धरती के बाहर दूर−दूर तक देख रही है इंसान की आंख। इस मोड़ पर यह विज्ञान कथा युद्ध और प्रेम के द्वंद्व रचती एक मानवीय कहानी भी हो जाती है। जेक के लिए तय करना मुश्किल है कि वह अपनी धरती का साथ दे या अपने प्रेम का।
लाख टके का सवाल यह है कि जिस तेजी से पृथ्वी के संसाधनों की लूट हो रही है क्या इस फिल्म को महज कल्पना मानकर हम इसे काफी और पोपकोर्न के साथ देखें। क्या ये सच नहीं है कि शहरों के भरपूर दोहन के बाद अब इंसान आदिवासी इलाकों उन जंगलों की ओर रुख करने लगा है जहां ये संसाधन वर्शों से संरक्षित पड़े हैं।
क्या पेंडोरा कोई दूसरा ग्रह ही है हमारे आसपास स्थित झाबुआ, अबूझमाड़ बस्तर के जंगल पेंडोरा नहीं है। क्या आपसी साहचर्य और प्रेम से भरे उनके जीवन में विकास के नाम पर भौतिक सुविधाओं और पैसे का जहर घोलने की कोषिष हम नहीं कर रहे हैं जो उनके लिए अब तक कतई गैर जरूरी बना रहा है। एक बार अवतार देखिए और इन सब मुद्दों पर सोचिए।
एक अजनबी शहर में मर जाने का ख्याल
जिससे अभी आप की जान पहचान भी ठीक से ना हुई हो
मर जाने का ख्याल बहुत अजीब लगता है
ये मौत किसी भी तरह हो सकती है
शायद ऐ बी रोड पर किसी गाडी के नीचे आकर
या फिर अपने कमरे में ही करेंट से
ऐसा भी हो सकता है की बीमारी से लड़ता हुआ चल बसे कोई
हो सकता है संयोग ऐसा हो की अगले कुछ दिनों तक कोई संपर्क भी ना करे
माँ के मोबाइल में बैलेंस ना हो और वो करती रहे फ़ोन का इंतज़ार
दूर देश में बैठी प्रेमिका / पत्नी मशरूफ हो किसी जरूरी काम में
या फिर वो फ़ोन और मेसेज करे और उसे जवाब ही ना मिले
दफ्तर में अचानक लोगों को ख़याल आयेगा की उनके बीच
एक आदमी कम है इन दिनों
ऐसा भी हो सकता है की लोग आपको ढूंढना चाहें
लेकिन उनके पास आपका पता ही ना हो ....
डाक्टर कलाम से एक मुलाकात
बिहार यात्रा वृत्तांत

सर की शादी २ तारीख को थी खूब डांस वांस किये हम लोग. रात में देर तक जग कर पूरब की शादी देखी. वहां से महावीर स्वामी का अंतिम संस्कार स्थल पावापुरी एकदम पैदल दूरी पर था सो सुबह सात बजे जा पहुंचे वहां. जलमहल में महावीर के पद चिन्हों के दर्शन किये और ढेर सारे मंदिरों का भ्रमण किया.

करीब १२ बजे बारात लौटी और २ बजे एक बार फिर सर को साथ लेकर हम लोग राजगीर-नालंदा की ओर कूच कर गए. राजगीर के गरम कुण्ड को लेकर मन में तरह तरह की जिज्ञासाएं थीं की आखिर वहां पानी गरम कैसे रहता है? गोलमोल पहाडी रास्तों से गुजरते हम राजगीर पहुँच तो गए लेकिन गर्म कुण्ड का गन्दला पानी देख कर मन घिन्ना गया सो नहाने का प्लान आम सहमती से रद्द कर दिया गया. राजगीर में हमने खाना भी खाया. उसकी गजब व्यवस्था थी. वहां ढेर सारे परिवार चूल्हा और बर्तन उपलब्ध कराते हैं आप अपना राशन लेकर जाइये जो मर्जी पका कर खाइए. उन्हें बस चूल्हे और बर्तन का किराया दे दीजिये.
कुण्ड की ओर जाते हुए एक अजीब बात देखी. वहां एक तख्ती पर लिखा था माननीय पटना उच्च न्यायलय के आदेश से कुण्ड में मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित है. तमाम कोशिशों के बावजूद मैं इस बारे में ज्यादा मालूमात हासिल न

अगला पड़ाव था नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष. शाम करीब ४ बजे हम वहां पहुंचे लेकिन तब तक कुछ साथियों की हिम्मत पर नींद और रात की थकन हावी हो चुकी थी सो उन्होंने गाडी में आराम करने का फैसला किया और हम ३-४ लोग जा पहुंचे नालंदा विवि के खंडहरों के स्वप्नलोक में. मन में बौध कालीन ज्ञान विज्ञानं के विकास की स्मृतियाँ कौंधने लगीं. हमने उसे जी भर के निरखा. विवि की १५०० पुरानी बसावट की व्यवस्था- कमरे, स्नानागार, भोजन कक्ष और विहार आदि को देख कर अपने शहरों की अनियोजित बनावट का ध्यान आ गया. लगा की हम विकास क्रम के कुछ मूल्यों में पीछे तो नहीं जा रहे हैं.
नालंदा विवि के बारे में सुन रखा था की आतताइयों के आग लगाने के बाद वहां रखी पुस्तकें ६ महीने तक जलती रही थीं. वहां १०००० से अधिक देशी विदेशी छात्र शिक्षा लेते थे जिन्हें प्रारंभिक प्रवेश परीक्षा में द्वारपाल के प्रश्नों का जवाब देना पड़ता था. आँखें वहां आये पर्यटकों में व्हेनसांग और फाहियान को ढूँढने लगीं.
स्थानीय साथियों ने बताया की सुनसान रास्ता है और ज्यादा देर करना ठीक नहीं. इस तरह समय के अभाव में हम वापस लौट आये.
गूगल और अपने मोबाइल की मदद से ली गयी तस्वीरें लगा रहा हूँ दोस्त डिजिटल कैमरे से ली गयी तस्वीरें जैसे ही मेल करेगा ढेर सारी आप की नजर करूँगा ..... --