फिल्म के नाम पर कूड़ा है कुर्बान


कल मैं शिव सैनिकों और सैफ करीना के आन्स्क्रीन इश्क की वजह से चर्चित फिल्म कुर्बान देखने गया था। एकदम कूड़ा फिल्म निकली। बोलीवुड की यह फिल्म कहने को तो आतंकवादियों का पक्ष पेश करने की कोशिश करती है लेकिन यह एक तरह से आतंकवाद को स्थापित करती है।

कुर्बान इस्लामिक आतंकवाद पर बने किसी वीडियो गेम की तरह है। जहां पहचान छिपा कर प्रोफेसर बना नायक (खलनायक?) सैफ अमेरिका में रह रही भारतीय लड़की करीना से शादी करता है ताकि वह उसके साथ अमेरिका जा सके। वहां वह अपने साथियों के साथ आतंकी हमलों की योजना बनाता है। उसकी पत्नी को जब उसकी असलियत पता चलती है तो वह एक सच्चे मुसलमान (जैसा कि होना चाहिए) विवके ओबेराय की मदद से हमलों को नाकाम करने की कोशिश करती है और कुछ हद तक सफल भी। नायक यानि सैफ अंत में आत्महत्या कर लेता है।

फिल्म की टैग लाइन है कुछ प्रेम कथाओं पर खून होता है। लेकिन इस फिल्म में तो प्रेम है ही नहीं। है तो सिर्फ नफरत, इस्लाम की फुरसतिया अंदाज में की गई व्याख्या, करीना के चेहरे पर स्थायी दहशत और मसखरा लगता हुआ आतंकवादी सैफ।

पूरी फिल्म में करीना कहीं भी मनोविज्ञान की प्रोफेसर नहीं लगती। पहले हाफ में हर संभव मौके पर सैफ करीना के चुंबन दृश्य और दूसरे हाफ में अतिरिक्त लंबा बिस्तर का सीन समझ से परे है।

फिल्म का इकलौता मार्मिक सीन वह है जहां मरते हुए सैफ से करीना उसका असली नाम पूछती है। एक व्यक्ति जिससे आपने प्यार किया, शादी की और जीवन की खुशियाँ बांटी लेकिन आपको अंत में पता चलता है कि वह आपसे पहचान छिपाकर आपके साथ रहता था। और आप तो उसका असली नाम भी नही जानते इस पीड़ा को करीना ने बेहतर अभिव्यक्ति दी है। बीच बीच में आतंकियों के मुंह से अमेरिका विरोधी वाक्यों का तड़का डाल कर उन्हें जस्टीफाई करने की जो कोशिश निर्देशक ने की है। उन दृश्यों और संवादों में थोड़ी और गहराई की जरूरत थी। विवेक ने अच्छा अभिनय किया है।

कुर्बान दरअसल न्यूयार्क और फना की मिक्सिंग है। लेकिन यह निराष करती है। सैफ करीना की बात समझ में आती है लेकिन ओम पुरी और किरण खेर जैसे समर्थ कलाकार ऐसी घटिया फिल्मों मंे काम क्यों करते हैं यह बात समझ से परे है। उन्हें किसी तरह का दायित्व बोध नहीं होता है क्या!

सलाह- जो लोग वास्तव में आतंकवाद पर फिल्म बनाना चाहते हैं उन्हें एक बार खुदा के लिए देख लेनी चाहिए।

5 comments:

Unknown ने कहा…

अच्छा हुआ बता दिया, मैं भी देखने वाला था…।
"खुदा के लिये" के साथ ही "ए वेडनेस्डे भी देखने लायक फ़िल्म है। न्यूयॉर्क भी कचरा ही थी…

बेनामी ने कहा…

abb ye bhi bta do khuda ke liye me kon hero hai

प्रदीप जिलवाने ने कहा…

अच्‍छा हुआ संदीप भाई आपने बता दिया कम से कम मेरे कुछ रूपये तो बचेंगे कुर्बान जैसी घटिया फिल्‍म देखकर. वैसे मैंने भी सुन रखा था यह फना की नकल है. अच्‍छी review है. बधाई.

संदीप कुमार ने कहा…

बेनामी भाई खुदा के लिए का लिंक दिया है उस पर क्लिक करें शायद आपके काम का कुछ मिले

संदीप कुमार ने कहा…

बेनामी भाई खुदा के लिए का लिंक दिया है उस पर क्लिक करें शायद आपके काम का कुछ मिले