क्रिकेट को कविता बना दिया सचिन ने...


वह सन 1989-90 के जाड़ों के दिन थे जब सियालकोट में पाकिस्तान के साथ श्रृंखला के अंतिम टेस्ट मैच में एक खतरनाक बाउंसर सीधी एक 16 साल के किशोर की नाक पर जाकर लगी थी। नाक से खून की एक धारा निकली। मैच देख रहे जाने कितने लोगो के दिल से आह निकली और व्याकुल माओं की छाती में दूध उतर आया। लेकिन वो लड़का जिद्दी था उसने मैदान नहीं छोड़ा और उस समय दुनिया के सबसे तेज माने जाने वाले पाकिस्तानी पेस अटैक का सामना करने की ठानी। वह अटैक जिसमें वकार, वसीम और इमरान खान खूंखार गोलंदाज शामिल थे.उसके बाद जो हुआ वो इतिहास का हिस्सा बन चुका है।

उस सिरीज ने क्रिकेट को एक नया नक्षत्र दिया- सचिन तेंदुलकर। वही सचिन जिसने हाल ही मे इंटरनेशनल क्रिकेट में 20 वर्ष पूरे किए हैं और रिकार्ड बुक्स उसके नाम से अटी पड़ी हैं। उसी सिरीज में खेले गए एक प्रदर्षनी मैच में सचिन ने पहली बार अपनी प्रतिभा की झलक दिखाई जब उन्होंने युवा पाकिस्तानी लेग स्पिनर मुश्ताक अहमद को एक ओवर में दो छक्के जड़े। इस पर तिलमिलाए मुश्ताक के गुरू और पाक के स्पिन लीजेंड अब्दुल कादिर ने सचिन को चुनौती ही दे डाली, ‘बच्चों को क्या मारते हो, मुझे मारो।’ सचिन खामोश रहे जैसे कि वे अब भी रहते हैं। सिर्फ उनका बल्ला बोला और उस ओवर का स्कोर रहा- 6,0,4,6,6,6,। उन्होंने महज 16 गेंदों पर अपना अर्ध शतक पूरा किया।

सचिन ने अगले साल इंग्लैंड में खेलते हुए टेस्ट क्रिकेट का पहला शतक तो जड़ दिया लेकिन वन डे में पहले शतक के लिए उन्हें अगले पांच सालों तक इंतजार करना पड़ा। शायद युवा सचिन के स्वभाव की हड़बड़ी और एक दिवसीय क्रिकेट का गतिशील रोमांच उन्हें विकेट पर टिकने नहीं दे रहा था। सचिन अनेक पारियो में ५० रन के बाद कैजुअल तरीके से खेलकर अपना विकेट गंवा बैठे।

सचिन को लता बहुत पसंद हैं। वे उन्हें आई (मां) बुलाते हैं और अपने हर दौरे पर उनके गीत सुनते हुए जाते हैं। लता स्वर कोकिला हैं और सचिन बल्लेबाजी का महाकवि। सचिन को बल्लेबाजी करते हुए देखकर लगता है कि मोजार्ट समेत दुनिया के तमाम बड़े संगीतकार इसी तरह अपने गीतों को आकार देते होंगे जितने करीने से सचिन स्ट्रोक लगाते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में 20 सालों से जमे सचिन ने कई झंझावात झेले। मैच फिक्सिंग का काला साया उनके ही दौर में क्रिकेट पर पड़ा, टीम इंडिया को विष्व कप के पहले ही दौर में बाहर होना पड़ा। लेकिन सचिन के स्वभाव की गंभीरता ने हर चीज को बहुत सहजता से लिया। मुंबई के मध्यमवर्गीय परिवार में पैदा हुए सचिन का माथा सफलता से नहीं फिरा। उन्होंने जाना कि ये सारी उपलब्धियां उनके पास इसलिए हैं क्योंकि क्रिकेट उनका जुनून बना हुआ है।

पांच फीट चार इंच के उस नाटे उस्ताद के कंधे एक अरब से ज्यादा की आबादी का बोझ दो दशकों से उठाए हुए हैं लेकिन वे आज तक झुके नहीं बल्कि उन्होंने ऐसे अनगिनत मौके दिए जब देशवासियों का सीना गर्व से चौड़ा हो गया।

उन्होंने आंखें उठाकर दुनिया को देखा मानो कह रहे हों देखो ये हमारा सचिन है-

मैदान पर शेर सा दहाड़ता सचिन

चीते सा चपल सचिन

बिल्कुल पड़ोस के लड़के जैसा सहज सचिन

बल्ले से कविताएं लिखता सचिन

गेंद से उम्मीदों पर खरा उतरता सचिन

सचिन जब बल्ला लेकर मैदान पर उतरते हैं तो वो मध्यकालीन रोमन ग्लेडिएटर की तरह दिखते हैं। उनके चेहरे की प्रतिबद्धता किसी भी गेंदबाज का हाड़ कंपा देने के लिए काफी होती है। जाने अनजाने कितने ही गेंदबाजों के करियर का सूर्य उनकी तूफानी बल्लेबाजी की छांव में अस्त हो चुका है।

सचिन की बल्लेबाजी में समय को थाम लेने की ताकत है। यकीन न हो तो उस समय आप शहर में निकलकर देखिए जब सचिन बल्लेबाजी कर रहे हों और शतक के आसपास हों। आपको पूरा शहर ठहरा हुआ मिलेगा।

हालांकि कि सचिन क्रिकेट के सबसे विवादित युग में एक खिलाड़ी के रूप में परिपक्व हुए लेकिन विवादों से उनका नाता दूर दूर तक नहीं रहा। जाने कितने ऐसे मौके आए जब लोगों ने सचिन का करियर खत्म होने की घोशणा ही कर डाली लेकिन सचिन ने कुछ नहीं कहा और हमेशा की तरह अपने बल्ले से जवाब दिया। सचिन ने आज अहमदाबाद के मोटेरा स्टेडियम पर श्रीलंका के खिलाफ टेस्ट क्रिकेट में अपना 43वां सैकड़ा जड़ा है। आलोचकों ने कलम घिसनी शुरू कर दी है की यह पारी एक मुर्दा पिच पर बेजान गेंदबाजों के सामने खेली गयी है...

सचिन अभी और खेलें और हमें आनंदित करें यही कामना है और क्या...