सिनेमा और मैं, भाग-1


जब से मैं पैदा हुआ मैंने घर में बीबीसी की आवाज ही सुनी है। हमारे घर में लंबे अरसे तक टीवी नहीं था क्योंकि पिताजी की नजर में वो सबसे कम जरूरी चीज थी जिसे घर में होना चाहिए था.


मैं शायद नौ या दस साल का रहा होउंगा॥ रविवार को कौन सी फ़िल्म आ रही है इसकी जानकारी स्कूल में दोस्तों से मिल जाती थी। मन में चिंता समा जाती की कैसे देखूंगा??


पड़ोस में टीवी देखने जाना होता तो एक दिन पहले से ही माहौल बनाना पङता घूम घूम कर खूब पढता ताकि ज्यादातर समय पिताजी की नजर पड़े तो मेरे हाथ में किताब हो। शाम को मां के सामने अर्जी लगाता " मां मैं फलाने के यहाँ टीवी देखने जाऊं... मां पिताजी से सिफारिश करती जाने दीजिये न सुबह से पढ़ रहा है. पिताज़ी की इच्छा पर मेरी एक एक साँस टंगी रहती की वो हाँ कहेंगे या न.....ज्यादातर मौकों पर तो मना ही कर देते. कभी कभी पूछते कौन सी फ़िल्म है........और मैं डरते-डरते नाम बताता.


तो कुछ इस अंदाज में सिनेमा से मेरा पहला परिचय हुआ।
तस्वीर -साभार गूगल

3 comments:

Shamikh Faraz ने कहा…

kafi acche andaz me cinema se aapka parichay hua

अखिलेश चंद्र ने कहा…

Kya baat hai guru!!!!!!

vidya bhushan ने कहा…

wow that's cool ..ur thinking about slumdog was great and its true .i agree with u