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पारी के बाद रमीज राजा के साथ बातचीत करते हुए पहली बार वह इस कदर मुखर हुए। उन्होंने कहा कि उनके सर से 50 किलो बोझ हट गया है। उनके मन का दर्द छलक आया जब उन्होंने कहा कि मार्च 2011 के बाद से हर कोई केवल 100वें शतक के बारे में बात कर रहा है। मेरे बाकी 99 शतकों का क्या? यह किसी भी सर्जक का दर्द है। हम इतने स्वार्थी क्यों हो जाते हैं। सचिन ने जब अपना 99वां शतक लगाया उसके बाद से उनकी हर पारी को स्कैन किया गया।
मैंने अपने आसपास महसूस किया कि लोगों ने पहले 100वें शतक का इंतजार किया फिर वे नाराज हुए उसके बाद उन्होंने सचिन के पूरे खेल का ही मखौल बना दिया। एसा क्यों हुआ यह तो वही लोग बता सकते हैं जो इसमें शामिल थे लेकिन इस बीच सचिन की तथाकथित असफलताएं (तथाकथित इसलिए क्योंकि उनकी असफल पारियां भी कई खिलाड़ियों की सफल पारियों पर भारी पड़ती है। पिछले एक साल के आंकड़े भी इसके गवाह हैं, बीते एक साल में वह कई मौकों पर शतक के करीब जाकर फिसल गए) लोगों के आनंद का विषय बन गईं।
हद तो तब हो गई जब कल टीम की पराजय के बाद कुछ लोगों को इस बात का सुकूं था कि चलो अच्छा हुआ अब इस सैकड़े पर उतनी बात नहीं होगी। इस जीत का श्रेय बांग्लादेश की शानदार बल्लेबाजी को क्यों नहीं जाना चाहिए? या फिर भारत की घटिया गेंदबाजी को? सचिन के शतक से उसका क्या लेना देना?
मैं खुद क्रिकेट को पसंद करता हूं, सचिन अपने बल्ले से जो लय जो संगीत रचते हैं वह भी मुझे भाता है। वहीं कई मसलों पर उनकी खामोशी खलती भी है लेकिन इससे तो इनकार नहीं किया जा सकता है कि हमारी जिंदगी से लगातार बेदखल हो रही कुछ खुशियों को सचिन नाम के इस जादूगर ने भी जन्म दिया है। कुछ नहीं तो कम से कम एक खिलाड़ी के रूप में सचिन की लगातार फिटनेस, उनके शानदार प्रदर्शन व एक विनम्र योद्धा के रूप में सचिन की इस उपलब्धि का सम्मान कीजिए बाकी चीजों पर कभी फिर बात कर लेंगे। अभी समय शेष है
1 comments:
सफलता की कुछ न कुछ वजह तो होती ही है .. आपके इस महत्वपूर्ण पोस्ट से हमारी वार्ता समृद्ध हुई है
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