अभी आंखों में ताव है बाकी

मेरे परिवार के तमाम लोग अलग अलग तरह की नौकरियां करते हैं उनमें सबसे बुरी नौकरी मुझे बिजली विभाग की लगती है। मेरे अग्रज अनिल कुमार पांडेय उसी विभाग में इंजीनियर हैं। जानने वाले जानते होंगे कि मध्य प्रदेश के राजपूत बहुल सीधी जिले के ग्रामीण हलकों में बिजली विभाग का इंजीनियर होने की अपनी अलग तरह की परेशानियां हैं। लेकिन भाई साहब हैं कि मस्ती से निभाए जा रहे हैं। न सिर्फ निभाए जा रहे हैं बल्कि खूबसूरत गजलें भी कह रहे हैं। इस बार होली में घर गया तो उनकी कुछ गजलें नोट कर लाया हूं। उन्हें आप सबसे साझा करूंगा- बारी बारी...ब्लॉगर

अभी आंखों में ताव है बाकी

जिन्दगी
से लगाव है बाकी
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तुम न जाना मेरे रुक जाने पर
फिर चलूंगा कि पांव हैं बाकी //

कोइ आंखों में ख्वाब है बाकी
उम्र का हर पड़ाव है बाकी
//

खेल बाकी है अभी चलने दो
अभी तो मेरा दाव है बाकी।

2 comments:

बेनामी ने कहा…

बहुत खूब। सच बात तो यह है कि काम कोई भी हो और कहीं भी हो लेकिन अगर आदमी अपने अंदर की खूबसूरती को पहचान कर उसके अनुरूप जीना सीख ले तो आस पास का खराब माहौल भी कुछ बिगाड़ नहीं सकता। फिर तो काम बोझ या परेशानी नहीं आनंद का विषय बन जाता है। अनिल कुमार जी के अंदर खूबसूरत विचार हैं और जो उन्हें आगे बढऩे की प्रेरणा देता है। यही बात उनकी गजल में दिख भी रही है।

बेनामी ने कहा…

बहुत खूब। सच बात तो यह है कि काम कोई भी हो और कहीं भी हो लेकिन अगर आदमी अपने अंदर की खूबसूरती को पहचान कर उसके अनुरूप जीना सीख ले तो आस पास का खराब माहौल भी कुछ बिगाड़ नहीं सकता। फिर तो काम बोझ या परेशानी नहीं आनंद का विषय बन जाता है। अनिल कुमार जी के अंदर खूबसूरत विचार हैं और जो उन्हें आगे बढऩे की प्रेरणा देता है। यही बात उनकी गजल में दिख भी रही है।