आप पुनीत से मिलेंगे तो मेरे इस हंसमुख युवा दोस्त की आँखों में एक अजीब सा खलल दिखेगा आप को। उसका एक मासूम सा सपना है जिसे करोडो आँखें अलग अलग समय में देखती रही हैं । वो इस दुनिया से खुश नहीं है और एक दिन इसे बदल देना चाहता है। पुनीत को पढना अच्छा लगता है। वहबहुत अच्छी कवितायेँ लिखता है, रंगकर्म उसे बहुत प्रिय है। इन दिनों वह मायएफएम इंदौर में स्क्रिप्टराईटर है ।
हाथ फेर दें और सभी कुछ
मिट जाए साधो
अपना दिल है रेत का टीला
थोडे़ है साधो
इस पगडंडी पे निकले है
मुड़ कैसे जाएँ
हमने कितने सारे रस्ते
छोडे़ है साधो
पहले अल्हड़ और मिजाजी
हाथी जैसे थे
अब राजाजी की परेड के
घोडे़ है साधो
सोच रहे है कैसे वापस
चिपका के आएं
उसके लिए जो इतने तारे
तोडे़ है साधो
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले किसान की डायरी
4 हफ़्ते पहले
2 comments:
बहुत ही अच्छी कविता है....
गहराई की बयां करने वाली....
बेहतरीन दिल को छू लेनेवाली!
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