दो चार कदम चल सकते हो



दो चार कदम चल सकते हो ,
दो बातें भी कर सकते हो
दो दिन की है पहचान मगर ,
तुम इतना तो कर सकते हो


दो कदम जो मेरे साथ चलो
तो जान सकोगे दशा मेरी
कुछ भाव मेरे , कुछ शब्द मेरे
कुछ आग मेरी , कुछ व्यथा मेरी
मैं चलूँगा धीरे-धीरे ताकि
बातें सालो साल चलें
मुझसे भी धीरे चले वक़्त
उससे भी धीरे शाम ढले
उससे भी छोटे कदम बढे
उससे भी छोटे रस्ते हों
दो दिन की है पहचान मगर
तुम इतना तो कर सकते हो


दो चार कदम चल सकते हो ,
दो बातें भी कर सकते हो
दो दिन की है पहचान मगर
तुम इतना तो कर सकते हो


गर दो बातों का वक़्त दो तो
मैं यूँ फिर अंतर्मन खोलूँ
एक बात कहूं मिलते से ही
एक मृत्यु शैया पैर बोलूँ
इस बीच मैं कुछ भी न बोलूँ
सृष्टि भी सारी मौन रहे
बस आँखे मेरी बात करें
और शब्द हैं जितने गौण रहें
इस मिलन से मृत्यु काल के बीच
बस साथ मेरे रह सकते हो ?
दो दिन की है पहचान मगर
तुम इतना तो कर सकते हो


दो चार कदम चल सकते हो ,
दो बातें भी कर सकते हो
दो दिन की है पहचान मगर
तुम इतना तो कर सकते हो

पुनीत का परिचय यहां पाएं।

4 comments:

Unknown ने कहा…

अच्छी कविता है दोस्त तुमने तो नीरज की याद ताजा करा दी।

neerav ने कहा…

nice poem Puneetji. it really sounds good.

संजय भास्‍कर ने कहा…

अच्छी कविता है दोस्त तुमने तो नीरज की याद ताजा करा दी।

पुनीत शर्मा ने कहा…

धन्यवाद्