नहीं रहीं प्रभा खेतान

मैंने अहमद फ़राज़ के जाने और उस पर साहित्य जगत में कोई सुगबुगाहट ना होने पर जो पीडा अनुभव की थी , प्रभा खेतान के जाने पर वो दो गुनी हो गयी।

स्त्री मन की कुशल चितेरी, वरिष्ठ रचनाकार प्रभाजी का बीते शुक्रवार की देर रात कोलकता में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। वे 66 वर्ष की थीं।

एक कवयित्री, नारीवादी चिंतक और उद्यमी आदि विविध रूपों में अपनी पहचान बनाने वाली प्रभा खेतान को दो दिन पहले दिल की तकलीफ के बाद अस्पताल में दाखिल कराया गया था। नवंबर 1942 में कोलकाता के एक रुढ़िवादी मारवाड़ी परिवार में जन्मी प्रभा ने तत्कालीन बंद समाज के दायरे को तोड़कर अपने लिए मंजिलें और उनके रास्ते खुद तय किए। ज्यां पाल सात्र्र के अस्तित्ववाद पर पीएचडी करने के बाद प्रभा ने अपना व्यवसाय खड़ा कर आर्थिक आत्मनिर्भरता अर्जित की।

साइमन दा बोउवा की दे सेकंड सेक्स का जो अनूठा अनुवाद उन्होंने स्त्री उपेक्षिता के नाम से किया था उसे पढने के बाद मैंने जाना की हम किन चीजों से कैसे कैसे कारणों से वंचित रह जाते हैं।

प्रभा खेतान का लेखन स्त्री मनोविज्ञान की गहन जांच पड़ताल करता है। 'बाजार में खड़ी स्त्री' और आपनी जीवनी 'अन्या से अनन्या तक' समेत अपनी विभिन्न रचनाओं में उन्होंने औरत के हक, भूमंडलीकरण और बाजारीकरण के दौर में उसकी स्थिति पर अपनी बात बेधड़क होकर कही। उल्लेखनीय है की स्त्री विमर्श की पैरोकार और उसका नेतृत्व कराने वाली प्रभा जी ने कभी ख़ुद को नारीवाद का स्वयम्भू अगुआ नही घोषित किया ।

उनकी जीवनी अन्या से अनन्या को पढ़ कर डॉ साहब के साथ उनके रूमानी संबंधों को मनही मन स्वीकार नही पाया था लेकिन ६० के दशक के समाज में उनके साहस ने सचमुच मन मोह लिया था

मैंने अपने मित्र शशि भूषण से हिन्दी साहित्य की इस विडम्बना पर बात की जिस बात ने हमें सबसे ज्यादा दुखी किया वह थी मीडिया में अपर्याप्त कवरेज । कमोबेश यही आलम त्रिलोचन की मौत पर भी सामने आया था । नितांत स्तरहीन घटिया बातों को प्रमुखता से छापने वाला हमारा मीडिया और आपसी लडाइयों में उलझे उनके स्वयम्भू आका। क्या कभी इन्हे एहसास होगा की जो हम खो रही हैं उसकी भरपाई कभी नही होगी ।


उनका पहला काव्य संग्रह 'उजाले' सन 1981 में और पहला उपन्यास 'आओ पेपे घर चलें' 1990 में प्रकाशित हुआ। एक और आकाश की खोज, कृष्णधर्म, सीढ़ियां चढ़ती हुई मैं आदि उनके प्रसिद्ध काव्य संग्रह हैं और छिन्नमस्ता, तालाबंदी, अग्निसंभवा, स्त्री पक्ष उनकी प्रमुख औपन्यासिक कृतियां हैं।

प्रभा खेतान कितनी बड़ी कवयित्री , उपन्यासकार, नारीवादी या चिन्तक थीं इस बहस में मुझे नही पड़ना मेरे लिए तो बस एक समर्थ स्त्री और इमानदार व्यक्तित्व की स्वामी थी यही पर्याप्त है.