वो मुझे नज्मगो समझती रही
मैंने चाहा उसे ग़जल की तरह

वो भी मिलना मिलाना सीख गया
अब मिलेगा नही वो कल कि तरह

आह भी कर सका न उसके लिए
वक्त के रुंधे हुए पल कि तरह

ढूंढना जब भी चाहा फुरसत में
आ लगा सामने अजल कि तरह

अब न मिलते हैं ख्वाब के रेले
धूप में झूमती फसल कि तरह .