tag:blogger.com,1999:blog-7921784057314610806.post8914517051407270979..comments2023-08-03T17:41:29.390+05:30Comments on दिल-ए-नादाँ: मुझे पता था तुम्हारा जवाबसंदीप कुमारhttp://www.blogger.com/profile/01263206934797267503noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-7921784057314610806.post-83419723650354785072009-12-28T20:48:48.420+05:302009-12-28T20:48:48.420+05:30Wah! Maza aa gaya!!!Wah! Maza aa gaya!!!अखिलेश चंद्रhttps://www.blogger.com/profile/09848906103236569590noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7921784057314610806.post-17172627653821810032009-12-28T14:10:07.428+05:302009-12-28T14:10:07.428+05:30jakhm gehra hai sandeep ji. marham ko khoj he liji...jakhm gehra hai sandeep ji. marham ko khoj he lijiye varna khali cup ki dastaan to lagbhag har daraj mein chipi hai<br /><br />aapki benami dost---saloniAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7921784057314610806.post-91901246120872844462009-12-20T23:21:11.723+05:302009-12-20T23:21:11.723+05:30वाह बन्धु !
पूरे माहौल को शरीर के साथ उपमित
कर के...वाह बन्धु !<br />पूरे माहौल को शरीर के साथ उपमित <br />कर के आपने छोटे में ही बहुत बड़ा कह डाला ..<br />सुन्दर कविता का आभार ,,,Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7921784057314610806.post-82929519045456297112009-12-20T20:22:05.569+05:302009-12-20T20:22:05.569+05:30सुन्दर कविता।
यह पहचानना भी एक खास बात है कि कवि...सुन्दर कविता। <br /><br />यह पहचानना भी एक खास बात है कि कविता के माध्यम से बात करने की और समझने की योग्यता सामने वाला रखता है कि नहीं। कई बार लोग कविता को लिजलिजेपन की आड़ बना लेते हैं। पात्रता होना और उसे पहचानना दोनो बराबर की योग्यता है।चन्दनhttp://www.nayibaat.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7921784057314610806.post-86387660003290705712009-12-20T16:29:29.349+05:302009-12-20T16:29:29.349+05:30शुक्रिया गिरींद्र
कविता तो हम सब के अंदर होती है न...शुक्रिया गिरींद्र<br />कविता तो हम सब के अंदर होती है न दोस्त जरूरत है उसे उतारने की बगैर परवाह किए कि दूसरे क्या सोचेंगेसंदीप कुमारhttps://www.blogger.com/profile/01263206934797267503noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7921784057314610806.post-17695750104054967832009-12-20T15:50:21.512+05:302009-12-20T15:50:21.512+05:30खिड़की के बारे में मैं हमेशा जो सोचता रहा हूं वह आ...खिड़की के बारे में मैं हमेशा जो सोचता रहा हूं वह आज पढ़ने को मिला- किसी का होकर भी उसका न हो पाना/ मेरे हिसाब से खिड़की के उस पार के लोग यही सोचते हैं वहीं उसे निहारने वाला हमेशा अकेला रह जाता है। <br /><br />कविताएं अक्सर ऐसी बात कह डालती है जो दिल के बेहद करीब होता है। हम अन्य माध्यमों से सपाट ढंग से ऐसी बात कह सकते हैं लेकिन दिल को छू जाए वह काम कविता ही कर सकती है। <br /><br />मुझे खुशी हुई यह जानकर कि संदीप तुम भी वही कहते हो- मुझे कवितायेँ तुमसे संवाद का बेहतर जरिया लगीं......Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झाhttps://www.blogger.com/profile/12599893252831001833noreply@blogger.com