tag:blogger.com,1999:blog-7921784057314610806.post4735010611214815569..comments2023-08-03T17:41:29.390+05:30Comments on दिल-ए-नादाँ: धर्म की नितांत दार्शनिक व्याख्या क्यूं।संदीप कुमारhttp://www.blogger.com/profile/01263206934797267503noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-7921784057314610806.post-56889924916931050232010-02-10T15:48:00.206+05:302010-02-10T15:48:00.206+05:30toh kya hum sabhi ko aastikta me wishwas karna cha...toh kya hum sabhi ko aastikta me wishwas karna chahiye ? aur kis western country ki baat ho rahi hai? koi data hai aapke paas ki pahle is jagah mein itne log wishwas karte the ab itne log karne lage?vidrohihttps://www.blogger.com/profile/11662299373207672037noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7921784057314610806.post-27456503161653963642010-02-06T19:42:23.469+05:302010-02-06T19:42:23.469+05:30धर्म एक ऐसा गंभीर मुद्दा है जिस पर लम्बे समय से बह...धर्म एक ऐसा गंभीर मुद्दा है जिस पर लम्बे समय से बहस होता आया है....और होता भी रहेगा.....कियोंकि न तो इसकी शुरूआत का पता है और न ही अंत का......ये एक ऐसा उलझन जिसे जितना सुल्जाओ उतना उलझता जाता है.....मेरे विचार से धर्म एक व्यक्तिगत मामला है....जिसे व्यक्तिगत ही रहने दिया जाय......तो बेहतर होगा....मार्क्स ने धर्म को अफीम कहा....उसका विशलेषण उस समय के हिसाब से सही रहा होगा......वैसे जितने भी जिहादी और आतंकी हुए है सभी कट्टर धार्मिक है.....बीजेपी, शिव सेना भी धर्म को लेकर राजनीती करती है....क्या ये सही है.....मैं धर्म के नकार में विश्वास नहीं करता.....पर इसके पीछे पागलों की तरह भागना कहाँ तक उचित है..... धार्मिक होना चाहिए धर्मांध नहीं...... कियोंकि धर्म नैतिकता सिखाता है.....जिस से बिना पर सामाजिक बंधन मजबूत होता है...मार्क्सवादी नेता ज्योति बासु भी वेस्ट बंगाल में धर्म और वामपंथ को साथ लेकर चले...आज वेस्टर्न कंट्री के लोग भी आस्तिकता में विश्वास करने लगे हैं.....ramanuj singhhttp://dilenadan.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7921784057314610806.post-89474495390770531102010-02-06T13:54:27.856+05:302010-02-06T13:54:27.856+05:30Rangnath singh ji aap bhi meri baton ko anyatha n ...Rangnath singh ji aap bhi meri baton ko anyatha n le. jaldi hi is maudde par kuchh aur likhne ki koshish karoonga.ajeet kumarhttp://dilenadan.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7921784057314610806.post-74611402478283460962010-02-06T13:40:57.362+05:302010-02-06T13:40:57.362+05:30अजित जी मेरे शब्दों को अन्यथा न लें। मैंने जो भी र...अजित जी मेरे शब्दों को अन्यथा न लें। मैंने जो भी राय बनाई वो इस पोस्ट को पढ़कर बनाई। आपके दूसरे लेखों को मैं पसंद करता रहा हूं। यह मुद्दा ऐसा है जिस पर आप जैसे विचारीशील व्यक्ति का ऐसा लेख देखकर थोड़ा सख्त हो बैठा।<br /><br />हो सकता है कि हम आपकी बात को पूरी तरह नहीं समझ पाएं हों। हमारा का मत अभी मत ही है। कोई स्थापना नहीं।Rangnath Singhhttps://www.blogger.com/profile/01610478806395347189noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7921784057314610806.post-88428682698137746192010-02-06T09:27:11.105+05:302010-02-06T09:27:11.105+05:30अजीत जी के पास धर्म को लेकर ताजे आंकड़े और विचारो क...अजीत जी के पास धर्म को लेकर ताजे आंकड़े और विचारो का सर्वथा अभाव है। <br /><br />Rangnath singh ji Apki is tippani ke baad vimarsh ke liye koyi jagah hi nahi bachti.ajeet kumarhttp://dilenadan.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7921784057314610806.post-9358805643253002812010-02-05T19:46:12.522+05:302010-02-05T19:46:12.522+05:30धर्म जैसे जटिल एव बहुआयामी विषय पर ऐसे लेख निराश ह...धर्म जैसे जटिल एव बहुआयामी विषय पर ऐसे लेख निराश ही करते हैं। करीब चार साल से कंपैरटिव रिलीजन में अध्ययनरत होने के अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि अजीत जी के पास धर्म को लेकर ताजे आंकड़े और विचारो का सर्वथा अभाव है। <br /> <br />बहस के लिए समय और स्थान नहीं है इसलिए सिर्फ एक ही तर्क रखुंगा। कोई चीज लम्बे समय से समाज में बनी हुई है इस कारण से वह जायज और अनिवार्य नहीं हो जाती। हत्या,व्याभिचार,शोषण,भेदभाव सभी लम्बे समय से बने हुए हैं। उन्हें दूर करने की सभी कोशिशें अधूरी साबित हुई हैं। फिर भी यही अधूरी कोशिशें हमारा सहारा बनती हैं।<br /> <br />आस्था एक निजी विषय है। यह बात धर्मांधों को छोड़कर अब ज्यादातर लोग मानते हैं। इसका वैचारिक सामान्यीकरण करने के परिणाम खतरनाक रूप से सामने आते हैं। जापान जैसे देश मे बहुसंख्यक वर्ग व्यावहारिक तौर पर अधार्मिक है। ऐसे ही पश्चिमी यूरोप के बहुतेरे देश सेकुलर हैं। अमरीका,खाड़ी देश और भारतीय उपमहाद्वीप ही पूरी दुनिया नहीं है।Rangnath Singhhttps://www.blogger.com/profile/01610478806395347189noreply@blogger.com