tag:blogger.com,1999:blog-7921784057314610806.post6797059415377208281..comments2023-08-03T17:41:29.390+05:30Comments on दिल-ए-नादाँ: क्या अक्षरधाम मन्दिर एक धार्मिक मॉल हैसंदीप कुमारhttp://www.blogger.com/profile/01263206934797267503noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-7921784057314610806.post-78933007928416160812009-01-04T19:08:00.000+05:302009-01-04T19:08:00.000+05:30क्या बात है कितना बढिया विषय उठाया आपने चर्चा के ल...क्या बात है कितना बढिया विषय उठाया आपने चर्चा के लिए . हां यह धार्मिक व्यापार के केन्द्र है . मैं वृन्दावन गया वहा जो शान्ति बाँके बिहारी जी की शरण मे मिली वह इस्कान के मन्दिर मे नही थी जबकि इस्कान का मन्दिर जयादा भब्य है .dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह }https://www.blogger.com/profile/06395171177281547201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7921784057314610806.post-12514777566735609082009-01-04T13:26:00.000+05:302009-01-04T13:26:00.000+05:30एकदम सही कहा है आपने, असल में यह "मॉल" ही हैं, पक्...एकदम सही कहा है आपने, असल में यह "मॉल" ही हैं, पक्के कारपोरेट स्टाइल के पॉश और करोड़ों रुपये खर्च करके बनाये हुए… ठीक इसी प्रकार इस्कॉन के मन्दिर भी काफ़ी भव्य और संगमरमरी होते हैं, जहाँ विदेशियों की भारी भीड़ होती है… जबकि परम्परागत भारतीय हिन्दू मन्दिर कीचड़, पानी, पंचामृत(??), हार-फ़ूल-पत्तियों की कतरनों, पुजारियों, धर्मालुओं(?) आदि के द्वारा फ़ैलाई गई गन्दगी से भरपूर होते हैं… लेकिन श्रद्धा अंधी होती है, लोग यह नहीं पूछते कि जब सरकार को इन मन्दिरों से भारी आय हो रही है तो इन मन्दिरों में मूलभूत सुविधायें भी क्यों नहीं हैं? इनके ट्रस्टियों में सूदखोर महाजन, भ्रष्ट उद्योगपति और गिरे हुए नेता क्यों शामिल होते हैं… और आम आदमी 4-4 घंटे लाइन में खड़े होकर दर्शन क्यों करता है, जबकि पैसे वालों के लिये विशेष अनुमति होती है… कुल मिलाकर सब घालमेल है भाई, "धर्म" एक "विशालकाय टर्नओवर वाला" उद्योग है…Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/02326531486506632298noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7921784057314610806.post-32833682639327698192009-01-04T11:39:00.000+05:302009-01-04T11:39:00.000+05:30मजेदार बात पकड़ी भाई संदीप। हमारा देश आधुनिकता और ...मजेदार बात पकड़ी भाई संदीप। हमारा देश आधुनिकता और पुरातनपने का अजीबोगरीब घालमेल है। इस ढोंग को सामने लाया जाना चाहिए। अच्छी पोस्ट के लिए बधाई।Kapilhttps://www.blogger.com/profile/15871506466698035418noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7921784057314610806.post-87277726879247080532009-01-04T11:36:00.000+05:302009-01-04T11:36:00.000+05:30मुझे समझ नही आता जब कण कण में ईश्वर हैं तो किसी भी...मुझे समझ नही आता जब कण कण में ईश्वर हैं तो किसी भी धर्मस्थल की क्या ज़रूरत है? आप जहाँ अभी है वहीं साक्षात् ईश्वर है , हर धर्मस्थल एक दुकान है, और बड़े मन्दिर मस्जिद चर्च गुरद्वारे या सिनगोग मॉल ही हैं. मक्का, तेहरान की मस्जिदें, जामा मस्जिद, बड़े केथेड्रल, चर्च, ज्योतिर्लिंग, तिरुपति, शिर्डी वगैरह मॉल ही तो हैं. <BR/>वरना मन चंगा ते कठौती में गंगा.ab inconvenientihttps://www.blogger.com/profile/16479285471274547360noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7921784057314610806.post-51756074651091015382009-01-04T10:14:00.000+05:302009-01-04T10:14:00.000+05:30मुझे तो समूचा हिन्दू धर्म ही माल के चक्कर में दिखा...मुझे तो समूचा हिन्दू धर्म ही माल के चक्कर में दिखाई पड़ता है।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7921784057314610806.post-89506186163311136422009-01-04T09:58:00.000+05:302009-01-04T09:58:00.000+05:30संदीप शुक्रिया, मॉल बनते मंदिरों पर की बोर्ड चलने ...संदीप शुक्रिया, मॉल बनते मंदिरों पर की बोर्ड चलने के लिए. लेकिन आपने ये जो कहा है न -<BR/>"मन्दिर की भव्यता के पीछे कितनी कहानियां दफ़न होंगी" इससे मैं सहमत नही हूँ. ऐसे मन्दिर खास उदेश्य से बनाये जाते हैंGirindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झाhttps://www.blogger.com/profile/12599893252831001833noreply@blogger.com