क्या कोई मुझे बताएगा की ये एनकाउंटर स्पेशलिस्ट क्या बला है

बहुत दिनों से मैं जानना चाहता हूँ कि आख़िर ये एनकाउंटर स्पेशलिस्ट क्या बला है।
क्या ये वाकई कोई पद है जिसका आधिकारिक रूप से सृजन किया गया है या फ़िर ये मीडिया प्रदत्त उपाधि है ।
मैं जानना चाहता हूँ कि कोई एनकाउंटर का स्पेशलिस्ट कैसे हो सकता है? कैसे कोई लोगों को मारने का स्पेशलिस्ट हो सकता है। ये स्पेशलिस्ट लोगों को मारता कैसे है घातलगाकर या आमने सामने कि लड़ाई में या पकड़ कर मुहँ में पिस्टल ठूंस कर........................... कोई मुझे बतायेगा कि ये एनकाउंटर स्पेशलिस्ट क्या बला है ???

तस्वीर साभार : गूगल बाबा

विचारधाराओं का टकराव...

उसने कहा, हमारे बीच विचारधाराओं का टकराव है
मैंने कहा, लेकिन मेरे पास तो विचार है ही नही
उसने कहा, झूठ बोलते शर्म नही आती
मैंने कहा, मैं सच कह रहा हूँ
उसने कहा, तुम तो बड़े विचारक बनते हो. तो क्या वो सब ढोंग है
मैंने कहा हाँ लेकिन हमारी दोस्ती तो ढोंग नही है न ?
उसने कहा नही ये कैसे होगा हमारी दोस्ती तो मिसाल है औरों के लिए...
उसके होठों पे मुस्कराहट थी
उसने मुझे गले लगा लिया और धीरे से कान में कहा
तुम कुछ भी कहो यार हिंदू आतंकवादी नही हो सकते...

सारे धुरंधर एक साथ

मेरी मेल पर ये तस्वीर एक दोस्त ने भेजी थी। इसमें दुनिया भर की चर्चित हस्तियों को एक साथ देखा जा सकता है... आप भी पहचानना चाहेंगे....................

दिल्ली का दिल अब कहीं और बसता है

कल शाम रिंग रोड पर मेरे साथ हुए हादसे ने मेरी इस धारणा को और बल दिया की में दिल्ली दिलवालों की तादात अब उतनी नही रही ।

हुआ यूँ की मैं शाम लगभग ६.३० बजे लाजपत नगर मार्केट से वापस लौट रहा था फ्लाई ओवर के नीचे से सफदरजंग एन्क्लावे स्थित अपने फ्लैट लौटने के लिए मैं यू टर्न ले रहा था तभी एक कार ने पीछे से टक्कर मार दी. एक पल को तो समझ ही नही आया की क्या हुआ ? मैं एक दम लहराता हुआ आगे की और सर के बल गिरा. हेलमेट के कारण सर तो बच गया लेकिन हाथ पैर में जम कर चोट लगी. मैं उठ नही पा रहा था सामने कुछ छुट्टे पैसे सौ का एक नोट और मेरा एटीएम कार्ड पडा हुआ था .................जाने किसने तो आकर उठाया.


सड़क पर संज्ञा शून्य बैठा हुआ मैं देख रहा था की मेरे अगल बगल से गुजर रही कारों में बैठे लोगों की नज्में कैसी झुंझलाहट थी उनके बस में होता तो शायद वो कुचल के आगे चले जाते.....
मुझे ठोकने वाली कार जिसमें दिल्ली की कोई एलीट फॅमिली सवार थी भागने की फिराक में थी मैंने लडखडाते कदमों से ही सही उसे रोकने की कोशिश की. लेकिन वो भाग गए. वहां खड़े कुछ रिक्शा चलाने वालों ने मुझे किनारे ले जाकर बिठाया. मैंने १०० नम्बर पर फ़ोन भी किया लेकिन ना किसी को आना था न आया.
वहां से किसी तरह गाडी चला कर हम डॉक्टर के यहाँ गए ड्रेसिंग करवाई। रात में मैं यही सोचता रहा की अमीरी लोगों को किस कदर लोग संवेदनहीन बनाती जा रही है। मुझे पता है की उस कार सवार ने मेरी हत्या कराने के इरादे से टक्कर नही मारी थी, लेकिन क्या वो रुक कार दो मिनट मुझे देख नही सकता था क्या उसके पास इतना वक्त नही था की रुक कार हाल चाल ले लेता। मेरे लिए इतना बहुत था। लेकिन मेरी मदद के लिए आगे आए दो रिक्शा खींचने वाले।

इस घटना ने एक बार फ़िर एहसास करा दिया की दिल्ली वालों का दिल अब अपनी जगह बदल चुका है। यहाँ के अमीरों के दिल तो जाने कब के बनियों के यहाँ गिरवी रखे जा चुके हैं...........

..............उनके बात करने के लहजे से पता चल रहा था की दोनों बिहार के हैं लेकिन बीच सड़क पर बेसुध पड़े हम दोनों को उठाते हुए उन्होंने एक बार भी नही पूछा की हम महाराष्ट्र के हैं या गुजरात या तमिलनाडू के....सुन रहे हो न राज ठाकरे......................