मैं कहीं खो रहा हूँ..........

एक मुद्दत हुई आखिरी बार ब्लॉग पर लिखे हुए। नौकरी ने बाकी सारे शौक छीन लिए। किताबें,सिनेमा,दोस्त,सब फिसलता जा रहा है मुट्ठी से रेत की तरह। तीन लाइन इंट्रो की तरह छोटी ह रही हैं बातें और साथ भी.गोया इससे बड़ा होने पर ख़बर का शेप बिगड़ जाएगा ( और हमारे रिश्तों का क्या?????? जो आज भी बात जोह रहे हैं सुदूर पूर्वांचल से लेकर यहीं दिल्ली की गलियों तक )।

इसी शहर में रहने वाले दोस्तों से भी अब मुलाक़ात होती है जी मेल के चैट बॉक्स में और वहां भी ज्यादातर समय लाल बत्ती का ट्रैफिक जाम लगा रहता है। डर लग रहा है मैं ऐसा नही था, कम से कम छः महीने पहले तक तो हरगिज नही ......

ये शहर मुझे बदल रहा है या फ़िर मुझे निगल रहा है.... दोस्तों का नाम याद करता हूँ तो ई-मेल पते या फ़िर इक्का दुक्का फ़ोन नम्बर याद आते हैं , दोस्तों के साथ वक्त बिताने की सोच पर भारी पड़ ने लगा है ऑफिस का कमिटमेंट। ऐसे में पढ़ाई में बीते पिछले दो साल बहुत याद आते हैं। याद आते हैं वो टकराव जिन्हें हम बड़े गर्व से वैचारिक मतभेद कहा करते थे, कहाँ चले गए वो विचार ... या कोई भी।

दुनिया बदलने के जिस सपने को लेकर हमारे सीनियर निकले थे हमारे साथ वो नही था , हमारे सामने था एक बड़ा खुला बाजार जहाँ हमें बिकना था हम अपनी सबसे अच्छी ड्रेस में सबसे मीठी बोली जबान में लिए उस समय दुनिया के सबसे शिष्ट लोग होते थे जब हमारे खरीददार आते थे।

ऐसे ही एक दिन हम बिक गए। लेकिन मन ने नही माना की हम बिक चुके उसने ढाढस दिया अरे नही अभी तो सिर्फ़ गिरवी हुई हैं आत्मा कुछ दिन में छुडा लेंगे लेकिन वो दिन नही आया।

बाबूजी कहते हैं क्या कर रहे हो इतनी दूर चले आओ। अम्मा फ़ोन पर बोलती काम रोटी ज्यादा हैं क्या रास्ता हैं मेरे सामने.......??????? इसी तरह बीत जायेगा जीवन तमाम कठिनाइयों के बीच झूठी मुस्कान और अधर ख़्वाबों के साथ.... मैंने ये बनाना कभी नही चाहा था..... मैं टूट रहा हूँ मुझे बचा लो..........

9 comments:

Udan Tashtari ने कहा…

आपका स्वागत है.. अब नियमित लिखें. शुभकामनाऐँ.

कृपा वर्ड वेरिफिकेशन हटा लेवे.. टिप्पणी देने में सुविधा होगी

शोभा ने कहा…

बहुत सुंदर लिखा है. स्वागत है आपका.

Amit K Sagar ने कहा…

क्या बात है!

Anita kumar ने कहा…

जो खुद उसी सागर में डूब रहे हैं वो तुम्हें कैसे बचा लें । आज हर किसी की यही कहानी है

شہروز ने कहा…

मन की व्यथा का संप्रेषण ही जब बलवती हो जाए तो लेखन का आरम्भ होता hai.
और ये आप से मिलकर लगता hai, आपके सृजन से मिलना ही, आपसे मिलना hai.
apni रचनात्मक ऊर्जा को बनाए रखें.
कभी समय मिले तो आकर मेरे दिन-रात भी देख लें.
http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/
http://hamzabaan.blogspot.com/
http://saajha-sarokar.blogspot.com/

Pawan Mall ने कहा…

bahut badiya keep going....

Tarun ने कहा…

आपका स्वागत है, अब नियमित लिखें, शुभकामनाऐँ.

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है निरंतरता की चाहत है बहुत सटीक लिखते हैं समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें

parikshit ने कहा…

aap ne such likha ye sabse badi baat hai......har koi yahan yuhi bazar or jimmedariyon ke beech fasa hua hai,jab aapke pass dost hote hao college hota to kuch or chahiye rahta hai,ham apni asantushti ko profation or life dono se jod dete hain or 1 baat ki peshe me pade hue aadmi ko nibhana bada asan hai or peshe mai nibh jana bahut mushkil..... (parikshit sharma)